इमाम के लिए मुकर्रिर होना कितना ज़रूरी है? ⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬
आजकल काफी जगह अवाम मस्जिद में किसी को इमामत के लिए रखते है तो उस से तकरीर कराते है अगर वह धूम धडाके से खूब कूद फांद कर हाथ पाँव फेंक कर जोशीले अन्दाज़ में जज़्बाती तकरीर कर दे तो बडे खुश होतें हैं और उसको इमामत के लिए पसन्द करते हैं यहाँ तक कि बाज़ जगह तो खुश इलहानी और अच्छी आवाज से नाते और नज़्में पढ दे तो उसको बहुत बढ़िया इमाम ख्याल करते हैं I इस बात की तवज़्ज़ोह नहीं देते कि उसका कुरआन शरीफ गलत है या सही I उसको मसाइल दीनिया से बकदरे ज़रूरत वाकफियत है या नहीं। और उसका किरदार व अमल मनसबे इमामत के लिए मुनासिब है या नहीं ।अगरचे तकरीर व बयान व खिताबत अगर उसूल व शराइत के साथ हो तो उससे दीन को तकवियत हासिल होती है और हुई है । लेकिन इसमें भी कोई शक नहीं कि दीनदारी तकवा शिआरी और ख़ौफे खुदा अमूमन कम सुखन और संजीदा मिजाज़ लोगों में ज़्यादा मिलता है I ज़वान जोर और मुँह के मजबूत लोग सब काम मुँह और जबान से ही चलाना चाहते है। और इस्लाम गुफ्तार से ज़्यादा किरदार से फैला है और आजकल के ज़्यादातर मौलवियों और इमामों के लिए बजाए तकरीर व खिताबत के जिम्मेदार उलमाए अहलेसुन्नत की आम फ़हम अन्दाज़ में लिखी हुई किताबे पढ कर अवाम को सुनाना ज़्यादा मुनासिब और बेहतर है खुलासा यह कि आज कल बाज़ जगह लोग जो इमाम के लिए मुकर्रिर होना जरूरी ख्याल करते हैं यह लोग गलती पर है।
No comments:
Post a Comment