ज़िन्दगी में कब्र व मज़ार बनवाना
⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬कुछ लोग अपनी जिन्दगी में कब्र तय्यार कराते हैं यह मुनासिब नहीं ।अल्लाह तआला फरमाता हैं
★तर्जमा -कोई नहीं जानता कि वह कहाँ मरेगा।★
क़ब्र तय्यार रखने का शरअन हुक्म नहीं अलबत्ता कफन सिलवा कर रख सकता है कि जहाँ कहीं जाये अपने साथ ले जाये और कब्र हमराह (साथ) नहीं जा सकती ।
(अलमलफ़ूज़ ,हिस्सा अव्वल ,सफा 69)
कुछ खानकाहियों को देखा कि वह ज़िन्दगी में पक्का मज़ार बनवा लेते हैं । यह रियाकारी है गोया कि उनको यह यकीन है कि वह अल्लाह तआला के वली और बुजुर्ग व बेहतर बन्दे है और इस मरतबे को पहुंचे हुए है कि आम लोगों की तरह कच्ची कब्रे नहीं बल्कि उन्हें खूबसूरत मज़ार में दफन होना चाहिए । हालांकि सच्चे वलियों का तरीका यह रहा है कि वह खुद को गुनाहगार ख्याल करते थे ,जो खुद को वली ख्याल करते और अपनी विलायत के ऐलान करते फिरते हैं, ये लोग औलियाए किराम की रविश पर नही हैं ।
पीराने पीर सय्यिदिना गौसे आजम शेख अब्दुल कादिर जीलानी रदियल्लाहु तआला अन्हु से बडा बुजुर्ग व वली हज़ार साल में न कोई हुआ और न कियामत तक होगा । उनकें बारे में हजरते सूफी जमाँ शेख मुसलेहुद्दीन सअदी शीराज़ी नकल करते हैं कि उनको हरमे कअबा में लोगों ने देखा कि कंकरियों पर सर रख कर खुदाए तआला की बारगाह में अर्ज़ कर रहे थे :-
*ऐ परवरदिगार अगर में सजा का ममुस्तहक़ हूँ तो तू मुझको क़ियामत के रोज़ अन्धा करके उठाना ताकि नेक आदमियों के सामने मुझको शर्मिन्दगी न हो।*(गुलिस्ताँ ,बाब 2 ,सफहा 67)
बाज़ सहाबए किराम के बारे में आया है कि वह यह दुआ करते थे *ऐ अल्लाह तआला मुझे जब मौत आये तो या जंगल का कोई दरिन्दा मुझे फाड़ कर खा जाये या कहीं समुन्द्र में डूब कर मर जाऊँ और मछलियों की ग़िज़ा हो जाऊँ।*
यअनी वह शोहरत से बचना चाहते थे और नाम व नमूद के बिल्कुल रवादार न थे और यही अस्ल फकीरी व दुरवेशी है, और आजकल के फकीरों को अपने मज़ारों की फिक्र पड़ी है ।
साहिबो ! चाहने मानने वाले मुरीदीन व मोअतक़दीन ( अक़ीदत रखने वाले) बनाने और बढाने और मज़ार व क़ब्र को उम्दा व खूबसूरत बनाने या बनवाने से ज़्यादा आख़िरत की फिक्र करो । खुदा व रसूल को राज़ी करो। मुरीदीन व मुअतकदीन की कसरत और मज़ारों की उम्दगी और संगेमरमर की टुकड़ियाँ अज़ाबे इलाही और क़ब्र की पिटाई से बचा नहीं सकेंगी अगर आप के कारनामो और ढंगों से खुदा व रसूल नाराज हैं ।
ऐसी फ़क़ीरी व सज्जादगी से भी क्या फाइदा कि कब्र के अन्दर आपकी बदअमलियों या बदएतकादियों और रियाकारियों की वजह से पिटाई होती हो और मज़ार पर मुरीदीन चादरें चढ़ाते, फूल बरसाते और धूम धाम से उर्स मनाते हों l
कोशिश इस बात की करो मुरीद हों या न हो मज़ार बने या न बने चादरें चढे या न चढें उर्स हो या न हो लेकिन कब्र में आपको राहत मिलती हो और जन्नत की खिड़की खुलती हो ख्वाह ऊपर से कब्र कच्ची हो और यह नेमत हासिल होगी, खुदा व रसूल के हुक्म पर चलने से I
(गलत फहमियां और उनकी इस्लाह, पेज 62)
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