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क्या शौहर के बीवी को हाथ लगाने से पहले महर माफ कराना ज़रूरी है

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काफी लोग यह ख्याल करते हैं कि शौहर के लिए ज़रूरी है कि निकाह के बाद पहली मुलाकात में अपनी बीवी से पहले महर माफ कराये फिर उसके जिस्म को हाथ लगाए यह एक गलत ख्याल है इस्लाम में ऐसा कुछ नहीं । महर माफ कराने की कोई ज़रूरत नहीं। आजकल जो महर राइज है, उसे 'गैर मुअज़्ज़ल' कहते हैं जो या तो तलाक देने या फिर दोनों में से किसी एक की मौत पर देना वाजिब होता है । इससे पहले देना वाजिब नहीं हां अगर पहले दे दे तो कोई हर्ज नहीं बल्कि निहायत ही उम्दा बात है । माफ करने की कोई ज़रूरत नहीं और महर माफ कराने के लिए बाँधा नहीं जाता है । अब दे या फिर दे, वह देने के लिए  है,माफ कराने के लिए नहीं ।
 
हाँ अगर महर 'मुअज़्ज़ल' हो यानी निकाह के वक़्त देना तय कर लिया गया हो तो बीवी को इख्तियार है कि वह अगर चाहे तो बगैर महर वसूल किए खुद को उसके काबू दे ना दे और उसको हाथ ना लगा दे और चाहे तो बगेर महर लिए भी उसको यह सब करने दे , माफ कराने का यहां भी कोई मतलब नहीं ।

(गलत फहमियां और उनकी इस्लाह, पेज 79)


1 comment:

  1. Apne farmaya meher gaire muajjal me ya to talaq hone pr ya dono me se kisi ki maot pr dena wajib hota h... Talaq wala masla to samajh aa gya . Lkn maot wale ki wazahat farmaye.. misal k taor pr agar biwi faot hui to meher kisko di jayegi. Or agar shohar faot hua to meher kon ada karega.?

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