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इमाम का मेहराब में या दो सुतूनों के दरमियान खड़ा होना

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कहीं कहीं देखने में आता है कि इमाम मेहराब में अन्दर हैं और मुकतदी बाहर यह खिलाफे सुन्नत और मकरूह है । सदरश्शरीआ मौलाना अमजद अली साहब अलैहिर्रहमा फरमाते है।
इमाम  को तन्हा मेहराब मे खड़ा होना मकरूह है और अगर बाहर खड़ा हो सिर्फ सज्दा मेहराब मे किया या वह तन्हा न हो बल्कि  उसके साथ कुछ मुक़तदी भी मेहराब में हों तो कुछ हर्ज नहीं, यूँ ही अगर मुक़तदिंयों पर मस्जिद तंग हो तो भी मेहराब में खडा होना मकरूह नहीं है । इमाम को दरों में खड़ा होना भी मकरूह है । (बहारे शरीअत, हिस्सा सोम ,सफहा 174,बहवाला दुर्रे मुख्तार व आलमगीरी)
इसका तरीका यह है कि इमाम का मुसल्ला थोडा पीछे हटा दिया जाये और वह थोड़ा पीछे हट कर इस तरह खड़ा हो कि देखने में महसूस हो कि वह मेहराब या दरो मे अन्दर नहीं है बल्कि बाहर खड़ा है फिर चाहे सज्दा अन्दर हो नमाज़ दुरुस्त हो जायेगी । इस मसअले को जानने के लिये फतावा रज़विया ,जिल्द 3, सफ़हा 42 का मुताअला करें।

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