रेडियो तार टेलीफोन की खबर पर बगैर शरई सुबूत के चांद मान लेना
⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬आजकल काफी लोग सिर्फ रेडियो तार टेलीफोन की खबर पर बगैर चांद देखे या बगैर शरई सुबूत के ईद मना लेते हैं या रमजान शरीफ का चांद हो तो रोजा रख लेते हैं यह गलत है अगर आसमान पर धुंध गुबार या बादल हो तो रमजान के चांद के लिए और ईद के चांद के लिए दो बा शरअ दीनदार भले मर्दों की गवाही जरूरी है आसमान साफ हो तो बहुत से लोगों का चांद देखना जरूरी है एक दो की गवाही काफी नहीं महज रेडियो तार व टेलिफोन की खबर पर न रोजा रखे न ईद मनायें जब तक कि आप की बस्ती में शरई तौर पर चांद का सबूत ना हो या दूसरी बस्ती में चांद देखा गया हो और शरई तौर पर इसकी इत्तिला आप तक ना आ गई हो । रेडियो टेलीफोन पर ईद मनाई जाए तो आजकल पूरी दुनिया में एक ही ईद होनी चाहिए और हमेशा ईद का चांद 29 दिन का ही होना चाहिए क्योंकि दुनिया में ईद का चांद कहीं ना कहीं 29 का जरूरी हर साल मान लिया जाता है और आज कल पूरी दुनिया में इसकी खबर हो जाना बज़रिए रेडियो टेलीफोन एक आम व आसान सी बात है तो रोज़े कभी 30 हो ही नहीं सकते।
सऊदी अरब में भी अमूमन हिंदुस्तान से हमेशा एक दिन पहले ईद मनाई जाती है तो रेडियो ,टेलीफोन पर अकीदा रखने वाले वहां के ऐलान पर ईद क्यों नहीं मनाते ? दिल्ली के ऐलान पर क्यों मनाते हैं ? इस्लामाबाद कराची लाहौर ढाका और रंगून की इत्तिलाआत क्यों नजर अंदाज कर दी जाती है?
अगर कोई यह कहे वह दूसरे मुल्क है तो हम पूछते हैं यह मुल्कों के तसकीम और बटवारे क्या कुरान व हदीस की रू से हैं क्या खुदा तआला व रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने कर दिए हैं या आजकल की मौजूदा सियासत और अहकामे मुत्ताहिदा की तरफ से हैं? और अहकामे मुत्ताहिदा की तसकीम की शरीअते इस्लामिया में क्या कोई हैसियत है ? यह भी हो सकता है की कोई कौमी हुक्मरां हो जाए खुदाए तआला पैदा फरमाये और वह इन सब मुल्कों को फतेह करके सबको एक ही मुल्क बना डालें और ऐसा हुआ भी है
और अगर जवाबन कोई कहे की मुल्क दूसरा और दूरी ज्यादा होने की बिना पर मतलअ अलग अलग है तो खयाल रहे कि इख़्तिलाफ़े मतालेअ मोतबर नहीं और अगर बिल फर्ज़ मान भी लीजिये तो हिंदुस्तान के वह शहर और इलाके जो अपने मुल्क के शहरों दिल्ली मुंबई और कोलकाता वगैरा से दूर है और दूसरे मुल्कों पाकिस्तान बांग्लादेश वर्मा चीन तिब्बत लंका नेपाल के बाज़ शहरों से करीब हैं तो उन्हें आप चाँद के मामले में कहां की पैरवी करने का मशवरा देंगे , अपने मुल्क की या जिन मुल्कों और शहरों से वह करीब है वहां की और वह मतलअ के बारे में दिल्ली मुंबई और कोलकाता की मुवाक़िफ़त करेंगे या दूसरे मुल्कों के अपने से करीब इलाकों की ?
खुलासा यह की बगैर शरई सुबूत के महज़ रेडियो तार व टेलीफोन की खबरों पर चांद के मामले में एतिबार करना इस्लाम व कुरान व हदीस के मुतलक़न खिलाफ है।
(फतवा आलमगीरी मिसरी ,जिल्द 3 ,सफहा 357 में है>" पर्दे के पीछे से अगर कोई शख्स गवाही दे तो उसकी गवाही मोतबर नहीं क्योंकि एक आवाज दूसरी आवाज की तरह होती है।")
तो रेडियो और टेलीफोन पर बोलने वाला तो हजारों लाखों पर्दों आड़ों के पीछे है उसकी गवाही क्यों मौतबर होगी?
फिर यह कि अगर आप की बस्ती में 29 का चांद ना हुआ और किसी जगह हो गया और आप तक शरअन इत्तिला न आई आपने रोज़ा न रखा या ईद का चांद है और ईद ना मनाई बल्कि रोज़ा रखा तो आप पर हरगिज़ कोई गुनाह अज़ाब नहीं क्योंकि अज़ाब व सवाब की कुंजी अल्लाह तआला के दस्ते कुदरत में है।
लिहाज़ा आप वह कीजिए जिसका उस ने हुक्म दिया है और उतना कीजिए जितना उस ने फरमाया है । हद से आगे मत बढ़िये और रेडियो टेलीफोन सुन-सुनकर शोर मत मचाइये कूद-फांद मत कीजिये । जाने दीजिए पूरी दुनिया में ईद हो जाए मगर आप तक शरई इत्तिला नहीं है आप रोज़ा रखिये आपसे बरोज़े क़ियामत कोई पुरसिश ना होगी फिर फिक्र की क्या ज़रूरत है के
फिक्र तो उसकी कीजिये जिसके बारे में कब्र व हश्र में सवाल होगा ।
हदीस शरीफ में है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि महीना कभी 29 का हो जाता है तो जब तक चाँद ना देखो रोज़ा ना रखो और अगर तुम्हारे सामने अब्र या गुबार आ जाए तो 30 दिन की गिनती पूरी की करो
(बुखारी व मुस्लिम, मिश्क़ात, सफहा 174)
गौर करने का मकाम है कि मौजूदा दौर की कचहरियों में भी जज और हकीम गवाहों को सामने बुलाकर गवाही लेते हैं अगर कोई घर बैठे टेलीफोन के ज़रिए गवाही दे दें तो हरगिज़ ना मानेंगे । तो शरई अहकाम और शहादतों कि आखिर आप की निगाह में कोई अहमियत है या नहीं , जिन्हें आप तार टेलीफोन और रेडियो के हवाले किये दे रहे हैं । खुदाए तआला का खौफ खाइए और आप दीनदार बनने की कोशिश कीजिये, दिन का ठेकेदार बनने की कोशिश मत कीजिये । वह जिसका काम है उस पर छोड़ दीजिये और अपनी अपनी बस्ती के उलेमा और इमाम जो अहले हक़ हो उनकी बात पर अमल कीजिये।
( गलतफहमियां और उनकी इस्लाह ,पेज 68)
No comments:
Post a Comment