मज़ारात पर हाज़िरी का तरीका
⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬औरतों को तो मज़ारात पर जाने की इजाज़त नहीं मर्दों के लिए इजाज़त हैं मगर वह भी चन्द उसूल के साथ :-
(1)पेशानी ज़मीन पर रखने को सज्दा कहते है यह अल्लाह तआला के अलावा किसी के लिए हलाल नहीं किसी बुजुर्ग को उसकी जिंन्दगी में या मौत के बाद सज्दा करना हराम है l कुछ लोग मज़ारात पर नाक और पेशानी रगड़ते है यह बिल्कुल हराम है।
(2) मज़ारात का तवाफ करना यानी उस के गिर्द खानाए काबा की तरह चक्कर लगाना भी नाजाइज़ है।
(3) अज़ रूए अदब कम से कम चार हाथ के फासिले पर खड़े होकर फातिहा पढ़े चूमना और छूना भी मुनासिब नहीं ।
(अहकामे शरीअत ,सफहा 234)
(4) मज़ामीर के साथ कव्वाली सुनना हराम है तफ़सील के लिए देखिये } फ़तावा रज़विया, जिल्द 10 , सफ़हा 54से 56)
कुछ लोग समझते हैं कि सज्दा बगैर नियत और काबे की तरफ़ मुतवज्जेह हुए नहीं होता । यह भी जाहिलाना ख्याल है सज्दे में जिसकी ताज़ीम या इबादत की नियत होगी उसको सज्दा माना जाएगा। और जो सज्दा अल्लाह तआला की इबादत की नियत से किया जाएगा वह अल्लाह तआला के लिए होगा और जो मज़ारात पर या किसी भी ग़ैरे ख़ुदा के सामने किया जाए वह उसी के लिए होगा । खुलासा यह कि ज़मीन पर किसी बन्दे के सामने सर रखना हराम है । यूंही बक़दरे रूकूअ झुकना भी मना है हॉ हाथ बाँध कर खड़ा होना जाइज़ है ।
(गलत फहमियां और उनकी इस्लाह, पेज 64)
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