क्या जिससे ज़ाती रन्जिश हो उसके पीछे नमाज़ नहीं होगी ?
⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬अकसर ऐसा होता है कि इमाम और मुक़तदी के दरमियान कोई दुनियवी इख़्तिलाफ़ हो जाता है । जैसे आजकल के सियासी,समाजी,खानदानी और बिरादरियों के इख़्तिलाफ़ और झगड़े। तो इन वुजूहात पर लोग उस इमाम के पीछे नमाज़ पढना छोड़ देते है और कहते हैं कि जिससे दिल मिला हुआ न हो उसके पीछे नमाज़ नहीं होगी, यह उनकी गलतफहमी है और वो लोग धोके में है
सही बात यह है कि जो इमाम शरई तौर पर सही हो उसके पीछे नमाज़ दुरुस्त है चाहे उससे आपका दुनियवी झगड़ा ही क्यूँ न चलता हो l बातचीत ,दुआ सलाम सब बन्द हो फिर भी आप उसके पीछे नमाज़ पढ़ सकते हैं । नमाज़ की दुरूस्तगीं के लिए ज़रुरी नहीं है कि दुनियवी एतबार से मुक़तदी का दिल इमाम से मिला हुआ हो I हाँ तीन दिन से ज़्यादा एक मुसलमान के लिए दूसरे मुसलमान से बुराई रखना और मेलजोल न करना, शरीअत में सख्त नापसन्दीदा है I
हदीस में है "रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:-
मुसलमान के लिए हलाल नहीं कि अपने भाई को तीन दिन से ज़्यादा छोड़ रखे । जब उससे मुलाकात,हो तो तीन मरतबा सलाम कर ले अगर उसने जवाब नहीं दिया तो इसका गुनाह भी उसके ज़िम्मे है I
(अबू दाऊद, किताबुल अदब ,जिल्द २ ,सफ़हा 673)
लेकिन इसका नमाज़ व इमामत से कोई तअल्लुक़ नहीं, रन्जिश और बुराई से भी इमाम के पीछे नमाज़ हो जायेगी I और जो लोग ज़ाती रन्जिशों के बिना पर अपने नफ़्स और ज़ात की खातिर इमामों के पीछे नमाज़ पढना छोड़ देते हैं, ये खुदा के घरों को वीरान करने वाले और दीने इस्लाम को नुकसान पहुँचाने वाले हैं l इन्हें खुदाए तआला से ड़रना चाहिए, मरने के बाद की फिक्र करना चाहिए । कब्र की एक एक घड़ी और कियामत का एक एक लम्हा बड़ा भारी पडेगा I
आलाहज़रत इमामे अहले सुन्नत फरमाते हैं :-
जो लोग बराहे नफ्सानिया इमाम के पीछे नमाज़, न पढ़े और जमाअत होती रहे और शामिल न हों,वो सख्त गुनाहगार हैं I (फ़तावा रज़विया, जिल्द 3 सफहा 221)
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