कमसिन बच्चों को मस्जिद में लाना
⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬ज़्यादा छोटे ना समझ कमसिन बच्चों का मस्जिद मे आना या उन्हें लाना शरअन नापसन्दीदा, नाजाइज़ व मकरूह है । कुछ लोग औलाद से बे जा महब्बत करने वाले नमाज़ के लिए मस्जिद में आते हैं तो अपने साथ कमसिन नासमझ बच्चों को भी लाते हैं । यहाँ तक कि बाज़ लोग उन्हें अगली सफों मे अपने बराबर नमाज़ में खड़ा कर लेते हैं यह तो निहायत गलत बात है और इससे पिछली सफों के सारे नमाज़ियों की नमाज़ मकरुह होती है और उसका गुनाह उस लाने वाले और बराबर में खड़ा करने वाले पर है और उन पर जो उससे हत्तल मकदूर मना न करें । हाँ जो समझदार होशियार बच्चे हों नमाज़ के आदाब से वाकिफ , पाकी और नापाकी को जानते हो उनको आना चहिये। और ज़्यादा छोटे जो नमाज़ को भी एक तरह का खेल समझते और मस्जिद में शोर मचाते खुद भी नहीं पढ़ते और दूसरों की भी नमाज़ खराब करते हैं ऐसे बच्चों को सख्ती के साथ मस्जिद में आने से रोकना ज़रूरी है ।
हदीस में है फ़रमाया रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने:
"अपनी मस्जिदों को बचाओ बच्चों से पागलों से खरीदने और बेचने से और झगड़े करने से और ज़ोर ज़ोर से बोलने से। (इब्ने माजा,बाब मा यकरहु फिल मस्जिद, सफहा 55)
सदरुश्शरीआ हज़रत मौलाना अमजद अली साहब आजमी रहमतुल्लाहि तआला अलैह लिखते हैं :
बच्चे और पागल को जिन , से नजासत का गुमान हो मस्जिद में ले जाना हराम है वरना मकरुह।"
(बहारे शरीअत, हिस्सा सोम, सफहा 182)
कुछ लोग कहते हैं कि बच्चे मस्जिद में नहीं आयेंगे तो नमाज़ सीखेंगे कैसे तो भाईयो समझदार बच्चों के सीखने के लिए मस्जिद है और नासमझ ज्यादा छोटे बच्चों के लिए घर और मदरसे हैं । और हदीसे रसूल के आगे अपनी नहीं चलाना चाहिए ।
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