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मज़ार पर चादर चढ़ाना कब जाइज़ है?

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अल्लाह तआला के नेक और खास बंदे जिन्हें औलिया किराम कहा जाता है उनके इंतिकाल के बाद उनकी मुकद्दस कब्रों पर चादर डाल देना जायज़ है इस चादर चढ़ाने में एक मसलिहत यह है कि इस तरह उनकी मुबारक कब्रों की पहचान हो जाती है कि यह किसी अल्लाह वाले की कब्र है और अल्लाह तआला के नेक बंदों की इज़्ज़त करना जिस तरह उनकी दुनियवी जिंदगी में जरूरी है उनके विसाल के बाद भी उनका अदब व इहतिराम जरूरी है और मज़ारात पर चादर चढ़ाना भी अदब व इहतिराम है और दूसरों से अलग उनकी पहचान बनाना है जो लोग औलिया किराम के मज़ार पर चादर चढ़ाने को नाजायज़ व गुनाह कहते हैं वह गलती पर है । लेकिन इस बारे में मसअला यह है कि एक चादर जो मज़ार पर पड़ी हो जब तक वह पुरानी और खराब ना हो जाए दूसरी चादर ना डाली जाए मगर आजकल अक्सर जगह मज़ारों पर उसके खिलाफ हो रहा है फटी पुरानी और खराब तो दूर की बात बात है मैली तक होने नहीं देते और दूसरी चादर डाल देते हैं। कुछ जगह तो दो चार मिनट भी चादर मज़ार पर रह नहीं पाती । इधर डाली और उधर उतरी यह गलत है और अहले सुन्नत के मज़हब के खिलाफ है । इस तरह चादर चढ़ाने के बजाए उस चादर की कीमत से मुहताजों व मिस्कीनों को खाना खिलादे या कपड़ा पहना दे या किसी गरीब मरीज़ का इलाज करा दे किसी ज़रूरतमंद का काम चला दे, किसी मस्जिद या मदरसे की ज़रुरत में ख़र्च कर दे , कहीं मस्जिद न हो वहां मस्जिद बनवा दे और इन सब कामो में उन्हीं बुज़ुर्ग के इसाले सवाब  की नियत कर ले जिनके मज़ार पर चादर चढ़ाना थीं तो यह उस चादर चढ़ाने से बेहतर है। हाँ अगर यह मालूम हो कि मज़ार पर चढ़ाई हुई चादर उतरने के बाद गरीबों मिस्कीनों और मुहताजों के काम में आती है तो मज़ार पर चादर चढ़ाने में भी कुछ हर्ज़ नही क्युकी यह भी एक तरह का सदक़ा और खैरात है लेकिन आजकल शायद ही कोई ऐसा मज़ार होगा जिसकी चादरें गरीबों मिस्कीनों के काम में आती हो बल्कि मुजावरिन और सज्जादगान उन पर कब्ज़ा कर लेते हैं और यह सब अक्सर मालदार होते हैं।
खुलासा यह है कि आजकल मज़ारात पर एक चादर पड़ी हो तो वहां दूसरी चादर चढ़ाने से बुजुर्गों के इसाले सवाब के लिए सदका व खैरात गरीबों मिस्कीनों और मोहताज के काम चलाना अच्छा है यही मजहबे अहले सुन्नत और उलमा ए अहले सुन्नत का फतवा है।

★आला हजरत इमामे अहले सुन्नत मौलाना अहमद रजा खान बरेलवी अलैहिर्रहमा फरमाते हैं★

और जब चादर मौजूद हो और वह पुरानी या खराब ना हुई हुई कि बदलने की हाजत हो तो चादर चढ़ाना फुज़ुल है बल्कि जो दाम इसमें खर्च करें वली अल्लाह की रूहे  मुबारक हो यह इसाले सवाब के लिए मोहताज को दें । हाँ जहाँ मालूम हो की चढ़ाई हुई चादर जब हाजत से ज़ाएद हो खुद्दाम मसाकीन हाजतमन्द ले लेते हैं और इस नियत से डालें तो कोई बात नहीं की यह भी सदक़ा हो गया। (अहकामे शरीअत  हिस्सा अव्वल सफहा 72)

और अगर ऐसी जगह जहां पहले से चादर मौजूद हो और वह बोसीदा और खराब ना हुई हो चादर चढ़ाने की मन्नत मानी हो तो उस मन्नत को पूरा करना जरूरी नहीं । और ऐसी मन्नत मानना भी नहीं चाहिए।

( गलतफहमियां और उनकी इस्लाह,पेज 65)

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