Wednesday


मगरिब और ईशा की नमाज़ कब से कब तक पढ़ी जा सकती है

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काफी लोग थोडा सा अंधेरा होते ही यह ख्याल करते है कि मगरिब की नमाज का वक़्त निकल गया I अब नमाज क़ज़ा हो गई और वे वजह नमाज़ छोड़ देते है या क़ज़ा की नियत से पढते हैं ।
मगरिब की नमाज का वक़्त सूरज डूबने के बाद से लेकर शफ़क़ तक है और शफ़क़ उस सफेदी का नाम है जो पच्छिम की तरफ सुर्खी डूबने के बाद उत्तर दक्खिन सुब्हे सादिक की तरह र्फैलती है ।

हाँ मगरिब की नमाज़ जल्दी पढ़ना मुस्तहब है और बिला उज्र दो रकअतो की मिक़दार देर लगाना मकरुहे तनज़ीहीं यानी खिलाफ़े औला है । और बिला उज्र इतनी देर लगाना जिस में कसरत से सितारे जाहिर हो जायें मकरुहे तहरीमी और गुनाह है ।  (अहकामे शरीअत, सफ़हा 137)
हाँ अगर न पढी हो तो पढे और जब तक ईशा का वक़्त शुरू नहीं हुआ है अदा ही होगी, क़ज़ा नहीं । और यह वक़्त सूरज डूबने के बाद से कम से कम एक घन्टा अट्ठारह मिनटऔर ज़्याद से ज़्याद एक घन्टा पैतीस मिनट है जो मौसम के लिहाज़ से घटता बढता रहता है। यानी एक घन्टे के ऊपर 18 से 35 मिनट के दरमियान घूमता रहता है । ईशा की नमाज़ के बारे में भी कुछ लोग समझते हैं कि उसका वक़्त 12 बजे तक रहता है यह भी ग़लत है । इशा की नमाज़ का वक़्त  फज्रे सादिक तुलूअ होने यानी सहरी का वक़्त खत्म होने तक रहता है । हाँ बिला वजह तिहाई रात से ज्यादा देर करना मक़रूह है।

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