इमाम का मुक़तदियों से ऊँची जगह खड़ा होना
⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬कई जगह देखा गया है कि नमाज में इमाम मुकतदियो से ऊँची जगह खड़ा होता है मसलन मस्जिद में अन्दर की कुर्सी ऊँची हैं और बाहर के हिस्से की नीची है और इमाम का मुसल्ला अन्दर के फर्श पर है और मुकतदी बाहर या दोनों अन्दर हैं लेकिन इमाम के मुसल्ले के लिए फर्श ऊँचा कर दिया गया है ,तो यह मकरूह है और इस तरह नमाज़ पढने से नमाज़ में कमी आती है ।
यह है कि इमाम का अकेले बुलन्द और ऊँची जगह खड़ा होना मकरूह है और ऊँचाई का मतलब यह हैं कि देखने से अन्दाज़ा हो जाये कि इमाम ऊँचा है और मुक़तदी नीचे और यह फर्क मामूली हो तो मकरूहे तनज़ीही और अगर ज़्यादा हो तो तहरीमी है। हाँ अगर पहली सफ इमाम के साथ और बराबर में हो बाकी सफे नीची हो तो कुछ हर्ज नहीं, यह जाइज़ है । इस मसअले की तफसील जानने के लिए फतावा रज़विया जिल्द न०3 सफहा 415 देखना चाहिए। इस मसअले का खास ध्यान रखना चाहिए क्योंकि खुद हदीस शरीफ में भी इस से मुताल्लिक मरवी है।
हदीस शरीफ:- हज़रते हुजैफ़ा रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जब इमाम नमाज़ पढ़ाये तो मुक़तदियों से ऊँची जगह खड़ा न हो।
(अबू दाऊद शरीफ ,जिल्द 1,सफहा 88)
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