Saturday



काफिरों को मुरीद करना

⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬
कुछ जाहिल नाम निहाद पीर काफ़िरों को मुरीद कर लेते है जब की काफ़िरों को जब तक वो  कुफ़्र और उसके लवाज़िमात से तौबा करके और कलमा पढ़ कर मुसलमान न बने उनको मुरीद करना उनके लिए मुरीद का लफ़्ज़ बोलना जहालत है। अजब बात है महादेव की पूजा कर रात दिन ,बूतों के सामने दंडवत करें और मुरीद आप का कहलाए। जो खुदा और रसूल का नहीं वो आपका कैसे हो गया?
सही  बात यह है कि वह आपका मुरीद न हुआ बल्कि उसकी मालदारी देख कर आप उसके मुरीद हो गए हैं।
↔↔↔↔↔↔↔↔↔↔↔↔↔↔↔↔↔↔↔
सय्यिदी आला हज़रत रदियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं ।
⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵⤵
कोई काफ़िर ख्वाह मुशरिक हो या मुवहहिद हरगिज़ न दाख़िले सिलसिला हो सकता है और न बे इस्लाम उसकी बैअत मुअतबर न कल्बे इस्लाम उसकी बैअत मुअतबर अगरचे बाद को मुसलमान हो जाए कि बैअत हो या कोई और अमल सब के लिए पहली शर्त इस्लाम है।
(फतावा रज़विया ,जिल्द 9, सफहा 157)
↔↔↔↔↔↔↔↔↔↔↔↔↔↔↔↔↔↔↔↔↔
काफ़िरों को मुरीद करने वाले कुछ पीर कहते है की हम ने उसे इसलिए मुरीद कर लिया है की वो हमारी मुहब्बत में मुसलमान हो जाए। ठीक है आपकी ये नियत है तो उसके साथ अच्छे अख़लाक़ और किरदार से पेश आइये लेकिन जब तक मुसलमान न हो उसे मुरीद न कहिये । और ज़रा यह भी बताइए कि अब तक आपने मुरीद करके कितने काफिर मुसलमान बनाए हैं आज तो वह ज़माना है कि  ग़ैर मुस्लिमों से वही दोस्ती और यारी रखने वाले मुसलमान ही काफ़िर या उनकी तरह हो रहे हैं । और मिसाल में उन बुजुर्गों के अखलाख व किरदार को पेश करते हैं जिन्होंने एक एक सफर में 90 90 हज़ार काफिरों को कलमा पढ़ाया ख्याल रहे कि तुममें और उनमें बड़ा फर्क है वह काफिरों को मुसलमान करते थे और तुम ताल्लुकात रखकर खुद उनकी तरह होते जा रहे हो पहले के बुजुर्गों के बारे में तारीख में ऐसी कोई मिसाल नहीं कि उन्होंने पहले मुरीद कर लिया हो और बाद में वह मुसलमान हुआ हो बल्कि पहले मुसलमान करते फिर मुरीद।  तुम में हिम्मत हो तो ऐसा ही करो

(गलत फहमियां और उनकी इस्लाह ,पेज 91)

No comments:

Post a Comment