ज़कात के मुताअल्लिक कुछ गलतफहमियां
⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬कुछ लोग फकीरों ,मस्जिदों ,मदरसों को यूंही देते रहते हैं और बाकाइदा ज़कात नहीं निकालते उनसे कहा जाता है कि आप ज़कात निकालिये तो कह देते हैं कि हम वैसे ही रहे खुदा में काफी खर्च करते रहते हैं यह उनकी सख्त गलतफहमी है आप हज़ार राहे खुदा में खर्च कर दें लेकिन जब तक हिसाब करके नियत ज़कात से ज़कात अदा नहीं करेंगे आपके यह इख़राजात जो राहे खुदा में आपने किये हैं यह ज़कात ना निकालने के अज़ाब व वबाल से आपको बचा नहीं सकेंगे ।
हदीस शरीफ में है कि जिसको अल्लाह तआला माल दे और वह उसकी ज़कात अदा ना करें तो कियामत के दिन वह माल गंजे सांप की शक्ल में कर दिया जाएगा जिसके सर पर दो चोटियां होंगी वह सांप उसके गले में तौक बना कर डाल दिया जाएगा । फिर उसकी बांछें पकड़ेगा और कहेगा मैं तेरा माल हूं मैं तेरा खजाना हूं । खुलासा यह की राहे खुदा में खर्च करने के जितने तरीके हैं उनमें सब से अव्वल ज़कात है ,नियाज़ नज़्र और फ़ातिहायें वगैरा भी उसी माल से की जायें जिसकी ज़कात अदा की गई हो । वरना वह क़ाबिले कबूल नहीं। अपनी ज़कात खुद खाते रहना और राहे खुदा में ख़र्च करने वाले बनना बहुत बड़ी गलतफहमी है और शैतान का धोखा है। इस मसअले की खूब तहक़ीक़ और तफसील देखना हो तो आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ बरेलवी की तसनीफ़ "अअज़्ज़ुल इकतिनाह " का मुतालआ कीजिये। ज़कात सिर्फ साल में एक बार निकलती है और वह एक हजार में सिर्फ 25 रुपये है जो कि साहिबे निसाब पर निकालना फ़र्ज़ है मसाइले ज़कात उलमा से मालूम किया जायें और बाकाइदा ज़कात निकाली जाए । ताकि नियाज़ व नज़्र और सदक़ा व ख़ैरात भी क़बूल हो सके ।
(गतल फहमियां और उनकी इस्लाह, पेज 73)
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