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खानकाही इख़्तिलाफात और इस सिलसिले में सही बात

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आजकल खानकाही इख़्तिलाफात का भी जोर है और एक पीर के मुरीद दूसरे के मुरीदों को और एक सिलसिले वाले दूसरे सिलसिले वालों को एक आंख नहीं भाते और उन्हें अपना दुश्मन जानते हैं और यह इसलिए कि उन्हें इस्लाम व कुरआन और अल्लाह का रसूल से महब्बत नहीं वरना यह हर मुसलमान और अल्लाह और रसूल पर ईमान रखने वाले से महब्बत करते ।

आजकल कुछ पीर भी ऐसे हैं कि उन्हें अपने ही मुरीद भाते हैं और अच्छे लगते हैं और दूसरों के मुरीदों को देखकर उनका खून खोलता है जबकि पीरी उस्तादी के आदाब व उसूल से है कि वह अपने शागिर्दों मुरीदों को जहां अपनी ज़ात से अक़ी दत व महब्बत सिखाये वहीं दूसरे अहले इल्म व फ़ज़्ल ,मशाइख और सुलहा की बेअदबी व गुस्ताख़ी से बचाये। बल्कि मुरीद करने का मकसद ही उसे बेअदबी से बचाना है क्योंकि इसमें ईमान की हिफाजत है और ईमान बचाने के लिए ही तो मुरीद किया जाता है और ईमान अदब का ही दूसरा नाम है।
जो पीर मुसलमानों को नफरत की तालीम दे रहे हैं और कौमे मुस्लिम को टुकड़ों में बांट रहे हैं, मुरीदों को मशाइख व उलेमा का बे अदब बना रहे हैं ,वो हरगिज़ पीर नहीं हैं बल्कि वो  शैतान का काम कर रहे हैं और इबलीस का लश्कर बढ़ा रहे हैं।
इस बारे में हक़ व दुरुस्त बात यह है कि जो मुसलमान किसी भी सिलसिलाए सहीहा में मुत्तासिलुस्सिलसिला पाबन्दे शरअ पीर का मुरीद है और उसके अक़ाइद दुरुस्त हैं, वह हमारा भाई है और मुरीद न भी हुआ हो वह भी यकीनन मुसलमान है और उसकी निजात के लिए यह काफी है। मुरीद होना ज़रूरी नहीं, मुसलमान होना ज़रूरी है। मुरीद होना सिर्फ एक अच्छी बात है, वह भी उस वक़्त जबकि पीर सही हो।

दरअसल पीरी व मुरीदी लड़ाई झगड़े और गिरोह बन्दी का सबब तब से बनी जब से यह ज़रीयए मआश और सिर्फ खाने कमाने और लम्बे लम्बे नज़रानों के हासिल करने का धन्धा बनी है। आज ज़्यादातर पीरों को इस बात की फ़िक्र नहीं कि मुरीद नमाज़ पढ़ता है कि नहीं, ज़कात निकालता है कि नहीं, सुन्नी है कि बद अक़ीदा ,मुसलमान हैकि ग़ैर मुस्लिम, उन्हें तो बस नज़राना चाहिए। जो ज़्यादा लम्बी नज़्र दे वही मियाँ के करीब है वरना वह मियाँ के नज़दीक बदनसीब है।

(गलत फहमियां और उनकी इस्लाह, पेज 103)

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