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फ़र्ज़ी कब्रे और मज़ार बनाना

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आजकल ऐसा काफी हो रहा है कि पहले वहाँ कुछ नहीं था अब बगैर किसी मुर्दे को दफन किये कब्र व मजार बना दिया क्या और पूछो तो कहते हैं कि ख़्वाब में बशारत हुई है । फलाँ मिया ने ख्वाब में आकर बताया है कि यहा हम दफन हैं, हमारा मजार बनाओ । सही बात यह है कि इस तरह कब्र व मज़ार बनाना उन पर हाजिरी देना, फातिहा पढ़ना, उर्स करना और चादर चढ़ना सब  हराम है । मुसलमानों को धोका देना और इस्लाम को बदनाम करना  है । और ख्वाब में मजार बनाने की बशारत शरअन कोई चीज नहीं और जिन लोगों ने ऐसे मजारात बना लिये हैं उनको उखाड देना और नाम व निशान खत्म कर देना बहुत ज़रूरी है ।
कुछ जगह देखा गया है कि किसी बुजुर्ग की छड़ी, पगड़ी वगैरा कोई उनसे मनसूब चीज़ दफन करके मज़ार बनाते हैं और कहीं किसी बुजुर्ग के मज़ार की मिट्टी दूसरी जगह ले जाकर दफन करके मज़ार बनाते हैं, यह सब नाजाइज़ व गुनाह है । सय्यिदी आला हज़रत फरमाते है *फ़र्ज़ी मज़ार बनाना और उसके साथ असल का सा मुआमला करना नाजाइज़ व बिदअत है और ख्वाब की बात ख़िलाफ़े शरअ उमूर में मसमूअ मकबूल नही हो सकता*।(फतावा रज़विया,जिल्द 4,सफहा 115)
जिस जगह किसी बुज़ुर्ग का मज़ार होने न होने में शक हो ,वहाँ भी नही जाना चाहिए और शक की जगह फातिहा भी नहीं पढ़नी चाहिए । कुछ जगह मज़ारात के नाम लोगों ने पतंग शाह बाबा,कुत्ते शाह बाबा ,कुल्हाड़ापीर बाबा ,झाड़झुड़ा शाह बाबा वगैरह रख लिए हैं । अगर वाकई वो अल्लाह वालों के मज़ार हैं तो उनको इन बेढ़ंगे नामों से याद करना ,उनकी शान में बेअदबी और गुस्ताखी है, जिससे बचना ज़रूरी है । और हमारी राय में इस्लामी बुज़ुर्गों को बाबा कहना भी अच्छा नहीं है क्योंकि इसमें हिन्दुओ की बोलियों से मुशाबहत है कभी यह भी हो सकता है कि वो इन मज़ारों पर कब्ज़ा कर ले और कहे कि यह हमारे पूर्वज है क्यूंकि बाबा तो हिन्दू धर्मात्माओं को कहा जाता हैं।


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