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अज़ीम शख्सियतों को मनवाने का तरीका 

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कुछ लोग जो शख्सियत परस्ती में हद से आगे बढ़े हुए हैं,वो अपनी महबूब और पसन्दीदा शख्सियतों को दूसरों से मनवाने के लिए लड़ाई झगड़ा करते हैं। और जो महब्बत उन्हें है, वो अगर दूसरा न करे तो बुरा मानते और उसे गुमराह और बद्दीन तक ख्याल कर बैठते हैं, और जबरदस्ती उससे मनवाना चाहते हैं। हालांकि महब्बत कभी भी ज़बरदस्ती नहीं पैदा की जा सकती और न सिर्फ़ फ़तवे लगाकर और न उन महबूब बन्दों और बुजुर्गों के नाम के नारे लगा कर और न जोशीली और जज्बाती तकरीरें करके।

बल्कि तरीका यह है कि जो वाकई बुज़ुर्ग साहिबे किरदार अल्लाह वाले लोग हैं यअनी हकीकत में वह इस्लामी नुक़्तए नज़र से अज़ीम शख्सियत के मालिक हैं तो उनका वह किरदार और तरीकए जिन्दगी, कारनामे और दीनी ख़िदमात, खुदातरसी और नफ़्सकुशी संजीदा अन्दाज़ में समझाने के तौर पर तकरीर या तहरीर के ज़रीए लोगों के सामने लाइये और जिन बातों की बुनियाद पर आपको उस साहिबे इल्म व फ़ज़ल से महब्बत है, वो बातें दूसरों को बताइये। अगर वह भी उनका आशिक़ व दीवाना हो जाये तो ठीक और न हो तो कोशिश आपका काम, अब आप जबरदस्ती मनवाने की कोशिश न कीजिए। हाँ जो लोग आमतौर पर बुज़ुर्गों की शान में गुस्ताख़ी करते हैं या ऐसे आलिम व बुज़ुर्ग कि जिनकी बुज़ुर्ग व बरतरी पर पूरी उम्मते मुस्लिमा इत्तिफाक कर चुकी हो उनकी शान में बकवास करते हैं, वो यक़ीनन गुमराह व बददीन हैं। वो अगर समझाने से न समझे तो उनसे दूरी और बेज़ारी ज़रूरी है। और जो गुस्ताखी व बेअदबी न करता हो। लेकिन आपकी तरह अक़ीदत व महब्बत भी न रखता हो तो उसके मुआमले में खामोशी बेहतर है। और उसके ख्यालात बेहतर हैं, इस्लामी हैं तो उसको मुसलमान ही ख्याल किया जाये,और अपना इस्लामी भाई समझा जाये।

इस्लामी शख्सियतों और अपने बुज़ुर्गोंपीरों या मशाइख को दूसरों से मनवाने के लिए सबसे ज़्यादा उम्दा तरीका और बेहतर ढंग आपका किरदार है। आज ऐसे लोग बहुत हैं जो हराम व हलाल में तमीज़ नहीं रखते, नमाजें छोड़ते, गाने , बजाने और तमाशों में लगे रहते हैं, उनकी नियतें ख़राब हो चुकी हैं, उनमें इस्लामी अख़लाक़ नाम की कोई चीज़ नहीं है और फिर ये बुज़ुर्गो के नाम के ठेकेदार बनते हैं, उर्स कराते, मज़ार बनवाते और उनके नाम की लम्बी लम्बी नियाज़े दिलवाते है, उनके नाम पर जलसे, जुलूस और महफ़िलों का इनइकाद करते हैं तो ये लोग कौम को बुज़ुर्गों से करीब करने के बजाय दूर कर रहे हैं और उनके ये ढंग लोगों के दिलों में अल्लाह वालों की महब्बत कभी भी पैदा न कर सकेंगे।

भाईयो! अल्लाह वालों से महब्बत करने वाले और उनकी महब्बत का बीज दूसरों के दिलों में बोने वाले वो हैं जिन्हें देखकर अल्लाह वालों की याद आ जाये। और अल्लाह वाले वो हैं जिन्हें देखकर अल्लाह की याद आ जाये। वरना ये पराये माल पर नज़र रखने वाले हरामखोर बेईमान, नियतख़राब लोग खुदाए तआला के उन बन्दों की अज़मत व इज़्ज़त लोगों के दिलों में नहीं बिठा सकेंगे कि जिन्होंने सब कुछ राहे खुदा में लुटा दिया। और अपना लालच के पिटारे, करोड़पति बनने की तमन्ना रखने वाले मुकर्रेरीन ,शाइरों कव्वालों, नामनिहाद पीरों फकीरों के ज़रीए से अल्लाह वालों की अज़मत व इज़्ज़त के झन्डे नहीं गाड़े जा सकते।

ज़रूरी है कि मुरीद अपने पीर का, शागिर्द अपने उस्ताद का और हर मुअतकिद अपने महबूब का नमूना हो तो तभी उससे अपने शेख और उस्ताद के कारनामे उजागर होंगे और उससे उनकी अज़मत लोगों के दिलों में बैठेगी। और जो लोग किसी बुज़ुर्ग के कारनामे और उसकी इस्लामी खिदमात अपने चाल व चलन किरदार व गुफ्तार के ज़रीए बताये बगैर ज़बरदस्ती उस बुज़ुर्ग शख्सियत को लोगों से मनवाने में लगे हैं, वो कौम में गिरोहबन्दी, तिफ़रक़ाबाजी कर रहे हैं और कौमे मुस्लिम को बिखेर रहे हैं, मुसलमानों को बांट रहे हैं।

(गलत फहमियां और उनकी इस्लाह ,पेज 123)

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