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बे औलाद मर्दों और औरतों के लिए ज़रूरी हिदायात

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औलाद दुनिया में अल्लाह तआला की बहुत बड़ी नेमत है। लिहाज़ा जिसको अल्लाह तआला यह नेमत अता फरमाये, उसको चाहिए कि वह खुदाए तआला का शुक्र अदा करे और अगर न दे तो सब्र करे। मगर आजकल कुछ मर्द और औरतें औलाद न होने की वजह से परेशान रहते हैं और इस कमी को ज़्यादा महसूस करते हैं। हालाँकि यह अहले ईमान की शान नहीं। मोमिन को दुनिया और उसकी नेमतों के हासिल होने की ज़्यादा फिक्र नहीं करना चाहिए, ज़्यादा फिक्र व ग़म आख़िरत का होना चाहिए। अगर आपने अपनी आख़िरत सुधार ली तो दुनिया की किसी नेमत के न पाने का ज़्यादा गम नहीं करना चाहिए। औलाद अल्लाह तआला की नेमत ज़रूर है लेकिन समझ वालों के लिए यह बात भी काबिले गौर है कि माल और औलाद को अल्लाह जल्ला शानुहु ने अपने क़ुरआनमें दुनिया की रौनक फ़रमाया, आख़िरत की नहीं।

अल्लाह तआला क़ुरआन करीम में इरशाद  फ़रमाता है
तर्जमा -माल और बेटे दुनियवी ज़िन्दगी का सिंगार हैं और बाकी रहने वाली अच्छी बातें हैं, उनका सवाब तुम्हारे रब के यहां बेहतर और वो उम्मीद में सबसे भली।
(सूरह कहफ़ पारा 16 रुकूअ 18)

कुरआने करीम में माल और औलाद को फितना यअनी आज़माइश भी कहा गया है, जिसका मतलब यह है कि इन चीजों को हासिल करके अगर खुदा व रसूल का हक भी अदा करता रहा तब तो ठीक, और माल व औलाद की महब्बत में अल्लाह तआला व रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को भूल गया ,हराम व हलाल का फर्क खो बैठा तो यह निहायत बुरी चीजें हैं। अलबत्ता नेक औलाद आख़िरत का भी सरमाया है लेकिन आने वाले जमाने में औलाद के नेक होने की उम्मीदें काफी कम हो गई हैं।

खुदाए तआला के महबूब बन्दों यअनी अल्लाह वालों में भी ऐसे बहुत से लोग हुए हैं जिनके औलाद न थी। सरकारे दो आलम हज़रत रसूले पाक मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की सबसे प्यारी बीवी सय्यिदा आइशा सिद्दीका रदियल्लाहु तआला अन्हा के भी कोई औलाद न थी। बल्कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ग्यारह बीवियाँ थीं, जिनमें से आपकी औलाद सिर्फ दो से हुई। सहाबा किराम में हज़रते सय्यिदेना बिलाल हबशी रदियल्लाहु अन्हु भी बेऔलाद थे।

हमारे कुछ भाई और बहनें बेऔलाद होने की वजह से हर वक़्त कुढ़ते रहते हैं और ज़िन्दगी भर दवा दारू और दुआ तावीज़ कराते रहते हैं और लूट खसोट मचाने वाले कुछ डाक्टर व हकीम और करने धरने वाले कठमुल्ले और मियाँ फ़कीर ,उनकी कमज़ोरी से खूब फाइदे उठाते,चक्कर लगवाते यहाँ तक की उन्हें बरबाद कर देते हैं ।

और डाक्टर व हकीमों और करने धरने वालों में आजकल मक्कारों, फरेबकारों की तादाद बहुत बढ़ गई है। कुछ टोका टाकी करने वाली और मशविरे देने वाली बूढ़ी औरतें, उन बेचारों को चैन से नहीं बैठने देतीं। और नये नये हकीमों, डाक्टरों और करने धरने वालों के पते बताती रहती हैं। यहाँ से छूटे तो वहाँ पहुँचे और यहाँ से निकले तो वहाँ फंसे। बेचारों की इसी में कट जाती है।

भाईयो! सब्र से बड़ी कोई दवा नहीं और शुक्र से बड़ा कोई तावीज़ नहीं। इससे हमारा मतलब यह नहीं है कि बेऔलाद दुआ और तावीज़ न करें। बल्कि हमारा मकसद यह बताना है कि थोड़ा बहुत इलाज भी करा लें। और अच्छे भले मौलवी, आलिमोंपीरों फकीरों से दुआ तावीज़ भी करा लें, अगर कामयाबी हो जाये तो ठीक, सुब्हानल्लाह! खुदाए तआला मुबारक फ़रमाये। और न हो तो सब्र से काम लें, खुदाए तआला की इबादत, उसका ज़िक्र और कुरआन की तिलावत में ध्यान लगायें। ज़्यादा हकीमों डाक्टरों और करने वालों के दरवाजों के चक्कर न लगायें और इसमें ज़िन्दगी की कीमती घड़ियों को न गंवायें, आखिर होना वही है, जो खुदाए तआला की मर्ज़ी है।

और एक जरूरी बात यह भी है कि अब करीबे कियामत जो ज़माना आ रहा है, उसमें ज़्यादातर औलाद नअहल निकल रही है और तजुर्बा शाहिद है कि अब औलाद से लोगों को सुकून कम ही हासिल होगा ।और अब बुढ़ापे में माँ बाप को कमा कर खिलाने वाले बहुत कम ,न होने के बराबर और नोच नोच कर खाने वाले ज़्यादा पैदा होंगे। आज लाखों की तादाद में साहिबे औलाद बूढ़े और बुढ़ियें सिर्फ इसलिए भीक मांगते घूम रहे हैं कि उनकी औलाद ने जो कुछ उनके पास था, वह या तो ख़त्म कर दिया या अपने कब्ज़े में कर लिया और मां बाप को भीक मांगने के लिए छोड़ दिया। बल्कि बाज़ तो माँ बाप से भीक मंगवा कर खुद खा रहे हैं और अपने बच्चों को खिला रहे हैं। गोया कि अब माँ बाप इसलिए नहीं हैं कि बुढ़ापे में औलाद की कमाई खायें बल्कि इसलिए हैं कि मरते दम तक उन्हें कमा कर खिलायें ख्वाह इसके लिए उन्हें भीक ही क्यूं न मांगना पड़े।

आज कितने लोग हैं कि उनकी ज़िन्दगी चैन व सुकून और शान के साथ कटी। लेकिन औलाद की वजह से बुरे दिन देखने को मिले। किसी को लड़के की वजह से जेल और थाने जाना पड़ा और पुलिस की खरी खोटी सुनना पड़ीं और किसी की जवान लड़की ने नाक कटवा दी और पूरे घर की इज़्ज़त खाक में मिला दी, चार आदमियों में बैठने के लाइक नहीं छोड़ा।

इस सबसे हमारा मकसद यह नहीं है कि औलाद मुतलकन कोई बुरी चीज़ है या बेऔलाद औलाद हासिल करने के लिए बिल्कुल कोशिश न करें। बल्कि बात वही है जो हम लिख चुके कि खुदाए तआला नेक औलाद दे तो, मुबारक! उसका शुक्र अदा करें और न दे तब भी परेशान न हों। मामूली दवा व तदबीर के साथ साथ सब्र व शुक्र ही से काम लें ।

और यह बता देना भी जरूरी है कि बदमज़हब व बददीन या अल्लाह तआला व रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम और माँ बाप की नाफरमान, बिगड़ी हुई, चोर,डकैत, शराबी, ज़िनाकार, हरामकार,अय्याश व बदमआश औलाद वाला होने से वो लोग बहुत अच्छे हैं, जिनके औलाद नहीं।

(गलत फहमियां और उनकी इस्लाह ,पेज 126)

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