चापलूसी पसन्द मुतवल्ली और मुहतमिम
⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬बाज़ जगह कुछ मस्जिदों के मुतावल्ली और और मदरसों के मुहतमिम का यह मिजाज़ बन गया है की उन्हें अच्छे भले पढ़े लिखे बासलाहियत और दीनदार इमाम और मुदर्रिस अच्छे नहीं लगते,उनसे उनकी नहीं पटती।वह अच्छे लगते हैं, जो उनकी चापलूसी करते हैं, उनकी हाँ में हाँ मिलाते हैं, जब वह तशरीफ़ लाये तो उन्हें अपनी मसनद पर बिठायें, खुद एक तरफ को खिसक जाये और कभी कभी बे ज़रूरत उनकी डाँट और फटकार भी सुन लें। ऐसे मुदर्रिस और इमाम आज के बाज़ मुतावल्लियों और मुहतमिमों को बहुत अच्छे लगते हैं ख्वाह वह कुछ जानते हों या न बच्चों को पढ़ाते हों, उन्हें इससे कोई मतलब नहीं, बस उनकी खुशआमद करते रहें।
दरअसल ऐसे मुतावल्ली और मुहतमिम इस्लाम की बरबादी का सबब हैं और उन्होंने मस्जिदों को वीरान कर रखा है और मदरसों का तालीमी मेयार बिल्कुल खत्म कर दिया है और इस बरबादी की पूछ गछ उनसे क़ियामत के रोज़ बड़ी सख्ती के साथ होगी।
दुआ है कि खुदाए तआला उन्हें होश अता फरमाये और ज़ात और नफ़्स से ज़्यादा उन्हें दीन और उसकी तरक्की से प्यार हो जाये, ख़्याल रहे कि इमामों, आलिमों, मौलवियों को परेशान करने वाले दुनिया व आख़िरत में ज़लीलव रूसवा होंगे।
यह भी बैठकर रोने की बात है कि आज बाज़ मदरसों में चन्दा कर लेना मकबूलियत का मेयार बन गया है । जो घूम फिर कर ज्यादा से ज्यादा चन्दा लाकर जमा कर दें वह महबूब व मक़बूल हैं और भले सच्चे, पढ़े लिखे, काबिल, बासलाहियत आलिम साहब बेचारे गिरी नज़रों से देखे जा रहे हैं।
हदीसें पाक में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने क़ियामत की निशानियों में से एक बात यह भी फरमाई थी कि "जब मुआमलात नाअहलों के सुपुर्द किये जाने लगें। "
यह आज खूब हो रहा है।अहले इल्म व फ़ज़्ल को कोई पूछने वाला नहीं और नाअहल बेइल्म चापलूस खुशामदी बातें बनाने वाले मसाजिद व मदारिस, मराकिज़ व दफातिर पर कब्ज़ा जमाये बैठे हैं।
(गलत फहमियां और उनकी इस्लाह ,पेज 113)
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