पढ़ने पढ़ाने से मुतअल्लिक़ कुछ गलतफ़हमियाँ
⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬आजकल कसरत से मुसलमान अपने बच्चों को ईसाईयों और बुत परस्तों मुश्रिकों के स्कूलों ,पाठशालाओं में पढ़ने भेज रहे हैं जबकि मुसलमानों को चाहिए कि वह हिन्दी,।अंग्रेज़ी,हिसाब व साइंस वगैरा की अदना (छोटी) व आला।(बड़ी) तालीम के लिए भी अपने स्कूल खोलें जिनमें दुनियवी तालीम के साथ साथ ज़रूरत के लाइक दीनी।तालीम भी हो या दीनी इस्लामी उलूम के साथ साथ ज़रूरत के लाइक दुनियवी उलूम भी पढ़ाये जायें और तालीम अगरचे दुनियवी भी हो लेकिन माहौल व तहज़ीब इस्लामी हो और गवर्नमेंट से मन्ज़ूरशुदा निसाब की किताबें भी पढ़ाई जायें लेकिन उनमें अगर कहीं कोई बात ऐसी हो जो इस्लामी नज़रियात के ख़िलाफ़ हों तो पढ़ाने वाले उस पर तम्बीह करके बच्चों के ईमान व अक़ीदे को बचायें क्यूंकि ईमान हर दौलत से बड़ी दौलत है।
मगर अफ़सोस कि मुसलमानों में भी हर किस्म के लोग।मौजूद हैं, दौलतमन्दों और अमीरों की तादाद भी काफी है, अगर चाहते तो आसानी से दुनियवी तालीम के लिए भी अपने स्कूल खोल देते मगर वहाँ तो ईसाईयत और मुशरिकाना तहज़ीब का नशा सवार है। ख्याल रहे कि वक़्त अब करीब आता मालूम हो रहा है और यह नशे जल्दी ही उतर जायेंगे। अस्ल बात यह कि जिस कौम के दिन पूरे हो चुके हों, उसे कोई समझा नहीं सकता। अभी जल्दी ही एक इस्लामी मुल्क इराक में अमरीकी ईसाईयों ने कब्ज़ा कर लिया और यह इसलिए हुआ कि वहाँ के लोगों ने ईसाई तहज़ीब और कल्चर को अपना लिया था और मुसलमान जिस कौम की तहज़ीब अपनाता है, उस कौम को उस पर हाकिम बना दिया जाता है।
इराकी मुसलमान गले में टाई बांधने लगे थे, इनके मर्दों औरतों ने इस्लामी लिबास छोड़कर ईसाइयों और अंग्रेजों का लिबास पहनना शुरू कर दिया था, शराब आम हो गई थी, नमाज़ रोज़ा बराए नाम रह गया था। आज लोग चीख रहे हैं कि इराक से इस्लामी हुकूमत चली गई लेकिन भाईयों चीखने से क्या फ़ायदा सही बात यह है कि पहले इस्लाम गया है, हुकूमत बाद में। अमरीकी फ़ौजें बहुत बाद में आई हैं, अमरीकी तहज़ीब पहले आ गई है।
(गलत फहमियां और उनकी इस्लाह ,पेज 151)
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