हलाल कमाने और दीनदार बनकर रहने की तरकीब
⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬जो शख्स हलाल कमा कर और दीनदार बन कर अल्लाह तआला व रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को राज़ी करना चाहे उसको चाहिए कि फुज़ूलखर्ची से बचे आजकल लोगों ने अपने इखराजात (ख़र्चे) बढ़ा लिये हैं और बेजा शौक और अरमान पूरे करने में लग गये हैं, ये कभी दीनदार नहीं बन सकते।
अगर आप सच्चे पक्के मुसलमान बनना चाहें तो आमदनी बढ़ाने से ज़्यादा फिक्र इख़राजात घटाने की रखिये क्यूंकि इखराजात की ज़्यादाती से आमदनी करने की हवस पैदा होती है और आमदनी करने की हवस इन्सान को बेरहम ज़ालिम और हरामखोर बनाती है - और जिनकी आदत आमदनी से ज्यादा खर्च करने की पड़ गई है, वो कभी चैन व सुकून से नहीं रह पाते, ज़िन्दगी भर परेशान रहते हैं और आमदनी से कम खर्च करने वालों की ज़िन्दगी बड़ी पुरसुकून और बाइज़्ज़त रहती है। और यही लोग वक़्त वे वक़्त दूसरों के भी काम आ जाते हैं।
इन्हीं वुजूहात की बिना पर कुरआने करीम में खुदाए तआला ने फुजूलख़र्च करने वालों को शैतान का भाई फ़रमाया और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि सादगी आधा ईमान है। आज साइंस की जदीद ईजादात ने भी इन्सान के इखराजात और उसकी ज़रूरतों को बढ़ा दिया है। इस पर कन्ट्रोल करने की ज़रूरत है। घर गृहस्थी की ज़रूरतों में एक दरमियानी रवय्या अपनाया जाये।
अफसोस कि आज हम दो चार जोड़ी कपड़ों में जिन्दगी
नहीं गुज़ार सकते बल्कि जोडों पर जोड़ें बनाये चले जा रहे हैं। अफसोस कि आज मजबूत और पक्का मकान बनाकर भी चैन से नहीं रहते बल्कि उनको सजाने और सँवारने में लाखों लाख रूपया उड़ाये चले जा रहे हैं ।
कुछ लोग शेख़ीख़ोरी की वजह से परेशान रहते हैं, उनकी यह आदत उन्हें ज़हनी सुकून हासिल नहीं होने देती। उन्हें हर वक़्त यह फिक्र रहती है कि अगर हम ऐसा कपड़ा पहन कर जायेंगे या ऐसा मकान नहीं बनायेंगे या ऐसा खाना नहीं खायेंगे और खिलायेंगे तो लोग क्या कहेंगे?
भाईयो! लोगों के कहने को मत देखो बल्कि अपने हाल और आमदनी को देखो। अगर आप पर अभी कोई वक़्त पड़ जाये तो यही मुंह बजाने वाले पास तक नहीं आयेंगे ,क़र्ज़ तक देने को तय्यार नहीं होंगे। हदीस पाक में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया :
"दुनिया में ज़िन्दगी मुसाफिर परदेसी की तरह गुज़ारो और
खुद को कब्र वालों में समझो।’’ (मिश्कात सफ़ा 450)
यअनी मुसाफिर और परदेसी जिस तरह कम से कम सामाने ज़िन्दगी के साथ सफर करता है यूं ही तुम भी दुनिया में एक मुसाफिर की तरह हो।
इस बयान से हमारा मतलब यह नहीं है कि खुदाए तआला हलाल कमाई से दे तो अच्छा खाना और पहनना नाजाइज़ है। बल्कि हमारा मकसद गैर ज़रूरी और फ़ालतू इखराजात से बाज़ रखना है ताकि कहीं आप कमाने की ज़्यादा फिक्र में बेईमान, ख़ाइन और हरामखोर न बन जायें और दीनदारी की ज़िन्दगी गुज़ारने के लिए इखराजात पर काबू रखना और फुज़ूलखर्चियों से बचना ज़रूरी है।
और इस बारे में जाइज़ व नाजाइज़ की हुदूद जानने के लिए फिक्ह व तसव्वुफ की किताबों का मुतालआ करना चाहिए।खासकर सदरुश्शरीआ हज़रत मौलाना अमजद अली साहब अलैहिर्रहमतु वर्रिदवान की किताब ‘बहारे शरीअत का सोलहवाँ हिस्सा पढ़ लेना एक मुसलमान के लिए फ़ी ज़माना निहायत ज़रूरी है।
हिन्दी पढ़ने वालों की आसानी के लिए बहारे शरीअत का सोलहवाँ हिस्सा ‘इस्लामी अख़लाक व आदाब’ के नाम से हिन्दी मे भी आ चुका है।
आजकल जो बेईमानों, बेरहमी और ज़ुल्म करके कमाने वालों और पराये माल को अपना समझने वाले रिश्वतखोरों की तादाद ज़्यादा बढ़ गई है, यहाँ तक कि वो लोग जो मुआमलात के साफ सुथरे हों, उनकी गिनती अब न होने के बराबर है, इस सबकी ख़ास वजह आजकल बेजा इखराजात और फुज़ूलखर्चियाँ हैं।
खुलासा यह कि हरामखोरी से बचने और दीनदार बनकर जो शख्स ज़िन्दगी गुज़ारना चाहे, उसके लिए फुज़ूलख़र्च से बचना और सादा ज़िन्दगी गुजारना आजकल ज़रूरी है।
(गलत फहमियां और उनकी इस्लाह ,पेज 121)
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