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औलाद को आक़ करने का मसअला

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बाज़ लोग अपनी औलाद के बारे में यह कह देते हैं कि मैंने इसको आक़ कर दिया और उसका मतलब यह ख्याल किया जाता है कि अब वह आक़ की हुई औलाद बाप के मरने के बाद इसकी मीरास से हिस्सा नहीं पाएगी हालांकि यह एक बेकार बात है और आक़ कर देना शरअन कोई चीज़ नहीं है और न बाप के यह लफ्ज़ बोलने से उसकी औलाद जाएदाद में हिस्से से महरूम होगी बल्कि वह बदस्तूर बाप की मौत के बाद उसके तरके में शरई हिस्से की हक़दार है।

हाँ माँ बाप की नाफरमानी और उनको ईज़ा देना बड़ा गुनाह है और जिसके वालिदैन उससे नाखुश हों वह दोनों जहाँ में इताब व अज़ाबे इलाही का हक़दार है और सख़्त महरूम है।

सय्यिदी आलाहजरत रदियल्लाहु तआला अन्हु इरशाद फरमाते हैं : "आक कर देना शरअन कोई चीज़ नहीं न उससे विलायत ज़ाइल हो।"
(फतावा रज़विया,जिल्द 5,सफहा 412)
(गलत फहमियां और उनकी इस्लाह ,पेज 135)

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