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औरत का कफ़न मैके वालों के ज़िम्मे लाज़िम समझना

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यह एक गलत रिवाज़ है l यहॉ तक कि कुछ जगह मैके वाले अगर नादार व गरीब हों तब भी औरत का कफन उनको देना जरूरी ख्याल किया जाता है और उनसे जबरदस्ती लिया जाता हैं और उन्हें ख्वाह सताया जाता है  हालाकि इस्लाम में ऐसा कुछ नहीं है ।
मसअला यह है कि मय्यत का कफन अगर मय्यत ने माल न छोडा हो तो जिन्दगी में जिसके ज़िम्मे उसका नान व नफका  था वह कफ़न दे और औरत के बारे में  खास तौर से यह है कि उसने अगरचे माल छोडा भी हो तो तब भी उसका कफन शौहर के जिम्मे है I (बहारें शरीअत हिस्सा 4 सफहा 139)
खुलासा यह है कि औरत का कफन या दूसरे खर्चे मैके वालों के ज़िम्मे ही लाज़िम ख्याल करना और बहरहाल उनसे दिलवाना, एक गलत रिवाज़ है, जिसको मिटाना ज़रूरी है।
(गलत फहमियां और उनकी इस्लाह,पेज 59)

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