हलाल जानवरों के पेशाब की छीटों का मसअला
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बहुत लोग हलाल' जानवरो के पेशाब की छींटें अगर बदन या कपडे पर लग जायें तो वह खुद को नापाक ख्याल कर लेते हैं यहॉ तक कि धोने या कपडे बदलने का मौका न मिले तो नमाज़ छोड़ देते है।
आलाहज़रत रदियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं "बैलों का गोबर पेशाब नजासते खफीफा है I जब तक चहारूम (चौथाई) कपडा न भर जाए या कुल मिला का इतनी पड़ी हों कि जमा करने से चहारूम कपडे की मिकदार हो जाए ,कपड़े को नजासत का हुक्म न देगें और उससे नमाज़ जाइज़ होगी और बिलफर्ज़ उससे ज़्यादा भी धब्बे हों और धोने से सच्ची मजबूरी यानी हरजे शदीद हो तो नमाज़ जाइज़ है।"
(फतावा रज़विया,जिल्द 2,सफहा 161)
हदीस शरीफ में है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया "जिसका गोश्त खाया जाता है उसके पेशाब में ज़्यादा हरज नही । "
यानी उसका पेशाब ज़्यादा सख्त नापाक नही।
(मिश्कात बाब तत्हीरिन्नजासत ,सफहा 53)
खुलासा यह कि हलाल जानवरों मसलन गाय, भैस, बैल, घोड़ा, ऊँट, बकरी का पेशाब नजासते ख़फ़ीफा (हल्की नापाकी ) है। कपड़े या बदन के किसी उज़्व (part) का जब तक चौथाई हिस्सा उसमे मुलव्विस न हो नमाज़ पढ़ी जा सकती है।और मामूली छीटें जो आम तौर पर किसानों के कपड़ो और बदन पर आ जाती हैं जिनसे बचना निहायत मुश्किल है उनके साथ तो बिला कराहत नमाज़ जाइज़ है और नमाज़ छोड़ने का हुक्म तो किसी सूरत में नही चाहे ब-हालते मजबूरी गंदगी कैसी ही और कितनी ही हो और धोने और बदलने की कोई सूरत न हो तो यूंही नमाज़ पढ़ी जाएगी ।नापाकी बहुत ज़्यादा हो या कपड़े न हो तो नंगें बदन नमाज़ पढ़ी जाएगी । यह जो जाहिल लोग मामूली मामूली बातो पर कह देते हैं कि ऐसी नमाज़ पढ़ने से तो न पढ़ना अच्छा। यह उनकी जहालत व गुमराही है। सही बात यह है कि मजबूरी के वक़्त नमाज़ छोड़ने से हर हाल में और हर तरह नमाज़ पढ़ना अच्छा है ।