Friday

कुत्ते का बदन या कपड़े से छू जाने का मसअला

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कुछ लोग समझते हैं कि कुत्ते का जिस्म अगर इन्सान के जिस्म या कपडे से लग जाये तो वह नापाक हो जाता है । यह उनकी गलतफहमी है ।कुत्ते का सिर्फ छू  जाना नापाकी नहीं लाता, हाँ अगर कुत्ते के जिस्म पर कोई नापाकी लगी हो और आप जानते हैं कि वह नापाक चीज है और वह उसके जिस्म से आपके लग गई तो जहाँ लगी वह जगह नापाक है ।यूही कुत्ते का पसीना और उसके मुँह की राल और थूक भी नापाक हैं । ये चीजें जहाँ लगेगी उसे भी नापाक कर देंगी । और ऐसी कोई सूरत न हो तो सिर्फ छू  जाना और बदन से लग जाना नापाकी के लिए काफी नहीं है और इस तरह सिर्फ छू जाने से कपड़ा और बदन नापाक नहीं होगा । 


अलबत्ता कुत्ता पालना इस्लाम में मना है । हाँ अगर शिकार या हिफाजत के लिए वाकई जरूरत हो,शौकिया और बगैर खास जरूरत के न हो तो इजाज़त है । तफ़सील के लिए  देखिये फतावा रज़विया जिल्द 10 किस्त 1 सफा 



क्या बीबी से हमबिस्तरी करने मे सारे कपड़े नापाक हो जाते है?

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काफी लोग यह समझते है कि शौहर बीवी कें हमबिस्तर होने से सारे कपडे नापाक हो जाते है यह गलत है बल्कि जिस कपडे के जिस हिस्से पर नापाकी लगी हो सिर्फ वही नापाक है बाकी पाक है कपडे के नापाक हिस्से को तीन बारे धो दिया  जाए और हर बाद धोकर खूब निचोड़ लिया जाए तो फिर उस कपडे से नमाज पढ़ सकते हैं और जिस कपडे पर नापाकी मसलन मर्द या औरत की मनी न लगी हो बगैर धोए पाक है ।

नींद से वुज़ू कब टूटता है?

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अक्सर देखा गया है कि मस्जिद के अन्दर नमाज के इन्तिजार में लोग बैठे  हैं और उन्हें नीद की झपकी की आ गई या ऊँघने लगे तो वह समझते हैं कि हमारा वुजू टूट क्या और वह अज़ खुद या किसी के टोकने से वुजू करने लगते है यह गलत है। 

मसअला यह है कि ऊँघने या बैठे बैठे झोके लेने से वुजू नहीं जाता ।(बहारे शरीअत, हिस्सा दोम, . सफ़हा 27) 

तिर्मिंजी और अबु दाऊद की हदीस में है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के सहाबए  किराम मस्जिद शरीफ में नमाज़े इशा के इन्तिज़ार में बैठे बैठे सोने लगते थे यहॉ तक कि उनके सर नींद की वजह से झुक झुक जाते थे फिर वह दोबारा बगैर वुजू किये नमाज पढ़ लेते थे । (मिश्कात मायूजिबुल वुज़ू सफहा 41)

नींद से वुजू तब टूटता है जब कि ये दोनो शर्तें पाई जाये

(1) दोनो सुरीन उस वक़्त खूब जमे न हों ।


(२) सोने की हालत गाफिल हो कर सोने से मानेअ ' न हो । (फ़तावा रज़विया, जिल्द 1, सफहा 71)

चित या पट या करवट से लेट कर सोने से वुजू टूट जाता है। उकडु बैठा हो और टेक लगा कर सो गया तो भी वुज़ू टूट जाएगा। पाँव फैला का बैठे बैठे सोने से वुज़ू नहीं टूटता चाहे टेक लगाए हुए हो । खडे खडे या चलते हुए या नमाज़ की हालत में कयाम में या रुक़ु में या दो जानू सीधे बैठ कर या सजदे में जो तरीका मर्दो के लिए सुन्नत है उस पर सो गया तो वुज़ू नहीं जाएगा । हाँ अगर नमाज़ में नींद की वजह से जमीन पर गिर पड़ा अगर फ़ौरन आँख खुल गई तो ठीक वरना वुज़ु जाता रहा । बैठे  हुए ऊँघने और झपकी की लेने से वुज़ु नहीं जाता ।

हर नापाकी का ग़ुस्ल करना ज़रूरी नहीं

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अकसर देखा गया है कि लोगों से पूछा कि आपने नमाज क्यूँ नहीं पढी तो वह जवाब में कहते हैं कि हम नहाए हुए नहीं हैं और होता यह है कि उन्होंने या तो पेशाब करने के बाद ढेले या पानी से इस्तिन्जा नहीं किया हैं या उन्होने  बदन और कपडे पर कहीं कोई नापाकी पेशाब या गोबर या कीचड़ वगैरा कोई गन्दगी लग गई हैं और वह यह ख्याल करते हैं कि इन सूरतों में गुस्ल करना और नहाना जरूरी है और बिला वजह नमाज छोड कर  बडे गुनाहगार होते हैं हालाकि इन सब सूरतों में नहाने की ज़रूरत नहीं बल्कि बदन या कपड़े के जिस हिस्से पर नापाकी लगी हो उसको धोना या किसी तरह उस नापाकी को दूर कर देना काफी है या जिस कपड़े पर नापाकी है उस कपड़े को बदल दिया जाए।यह भी उस सूरत में है जब कि नापाकी दूर करने या उसको धोने  पर क़ादिर हो वरना ऐसे ही नापाक कपड़े में नमाज़ पढ़ी जाए और अगर तीन चौथाई से ज़्यादा कपड़ा नापाक हो तो नंगे बदन नमाज़ पढे और अगर एक चौथाई पाक है बाकी नापाक तो वाजिब है कि उसी कपड़े में नमाज़ पढ़े।

(बहारे शरीअत ,हिस्सा 3,सफहा 46)

मगर यह सब उसी वक़्त है जब कि नापाकी को दूर करने या धोने की कोई सूरत न हो और बदन छुपाने को कोई और कपडा न हो । 

इन मसाइल की तफसील जानने कें लिए फतावा आलमगींरी ,फतावा रजविया ,बहारे शरीअत, कानूने शरीअत निज़ामे शरीअत वगैंरा किताबे पढना चाहिए ।

खुलासा यह है कि नमाज किसी सूरत में छोडने की इजाज़त नहीं है और हर नापाकी पर नहाना फर्ज नहीं । ग़ुस्ल फर्ज़ होने की तो चन्द मखसूस सूरते है ।जैसे मर्द औरत के साथ हमबिस्तर होना दोनो में से किसी को एहतिलाम होना या जोश और झटको के साथ मनी का खारिज  होना औरतों को हैज व निफास आना । तफसील के लिए दीनी किताबे पढे ।

Tuesday

क्या बच्चे को दूध पिलाने से औरत का वुज़ू टूट जाता हैं?

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बाज़ जगह जाहिलों मे यह मशहूर हो गया है कि औरत अगर बच्चे को दूध पिलाए और बावुजू हो तो उसका वुज़ू टूट जाता है। यह महज़ गलत है बच्चे को दूध पिलाना हरगिज़ वुज़ू नही तोड़ता और उसके बाद वुज़ू फिर से किये बगैर  नमाज़ पढ़ सकती है दुबारा वुज़ू करने की हाजत नही।


निफ़ास की मुद्दत

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अकसर औरतों में यह रिवाज़ है कि बच्चा पैदा होने के बाद जब तक चिल्ला पूरा  न हो । चाहे खून आना बन्द हो गया हो न नमाज पढें न रोजा रखें और न अपने को नमाज के लाइक जाने यह महज जहालत  है l जब निफास यानी खून आना बन्द हो जाए उसी वक़्त से नहा कर नमाज शुरू कर दें और अगर नहाना नुकसान करे तो तयम्मुम करके नमाज पढें I यानी निफास की  मुद्दत चालीस दिन जरूरी ख्याल करना गलत फ़हमी है जब तक खून आए तभी तक औरत निफास में मानी जाएगी I ख्वाह चन्द दिन ही हुए हों I हाँ अगर चालीस दिन गुजरने कं बाद भी खून आना बन्द न हो तो चालीस दिन के बाद नहा कर नमाज पढ़ेगी और जिन दिनो में उस पर नमाज़ रोजा ,फ़र्ज़ है उन . दिनो में शौहर और बीबी का हमबिस्तर होना भी जाइज़ है।

हैज़ व निफास वाली औरतों को मनहूस समझना

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जच्चा पन और माहवारी मे औरतों के साथ खाने पीने और उनका झूठा खाने में हरज नही । हिन्दुस्तान में जो बाज़ जगह उनके बरतन अलग कर दिये जाते हैं। उनके साथ खाने पीने को बुरा जाना जाता है या बरतनों को नापाक ख्याल किया जाता हैं यह हिन्दुओ की रस्मे है।ऐसी बेहूदा रस्मों से बचना ज़रूरी है। अलबत्ता इस हालत में मर्द का अपनी बीबी से हमबिस्तरी करना हराम है।


परिन्दों की बीट (पाखाने) का मसअला

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जो परिन्दे ऊचे नहीं उडते जमीन पर रहते है जैसे मुर्ग़ी और बतख उनकी बीट या पाखाना इन्सान के पाखाने और पेशाब की तरह नजासते गलीजा यानी सख्त किस्म की नापाकी है I और जो परिन्दे ऊपर उडते हैं उनमें जो हलाल हैं उनकी की बीट पाक है जैसे कबूतर फाख्ता मुर्गाबी मैना घरेलू चिडिया गुलगुचिया वगेरा । जो परिन्दे हराम हैं जैसे कौआ चील शिकरा बाज़ उनकी बीट नजासते खफीफा (हल्की नापाकी) है । उसका वही हुक्म है जो हलाल जानवरो के पेशाब का है। 


हलाल जानवरों के पेशाब की छीटों का मसअला

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बहुत  लोग हलाल' जानवरो के पेशाब की छींटें अगर बदन या कपडे पर लग जायें तो वह खुद को नापाक ख्याल कर लेते  हैं यहॉ तक कि धोने या कपडे बदलने का मौका न  मिले तो नमाज़ छोड़ देते है। 

आलाहज़रत रदियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते  हैं "बैलों का गोबर पेशाब नजासते खफीफा है I जब तक चहारूम (चौथाई) कपडा न भर जाए या कुल मिला का इतनी पड़ी हों कि जमा करने से चहारूम कपडे की मिकदार हो जाए ,कपड़े को नजासत का हुक्म न देगें और उससे नमाज़ जाइज़ होगी और बिलफर्ज़ उससे ज़्यादा भी धब्बे हों और धोने से सच्ची मजबूरी यानी हरजे शदीद हो तो नमाज़ जाइज़ है।"

(फतावा रज़विया,जिल्द 2,सफहा 161)

हदीस शरीफ में है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया "जिसका गोश्त खाया जाता है उसके पेशाब में ज़्यादा हरज नही । "

यानी उसका पेशाब ज़्यादा सख्त नापाक नही।

(मिश्कात बाब तत्हीरिन्नजासत ,सफहा 53)

खुलासा यह कि हलाल जानवरों मसलन गाय, भैस, बैल, घोड़ा, ऊँट, बकरी का पेशाब नजासते ख़फ़ीफा (हल्की नापाकी ) है। कपड़े या बदन के किसी उज़्व (part) का जब तक चौथाई हिस्सा उसमे मुलव्विस न हो नमाज़ पढ़ी जा सकती है।और मामूली छीटें जो आम तौर पर किसानों के कपड़ो और बदन पर आ जाती हैं जिनसे बचना निहायत मुश्किल है उनके साथ तो बिला कराहत नमाज़ जाइज़ है और नमाज़ छोड़ने का हुक्म तो किसी सूरत में नही चाहे ब-हालते मजबूरी गंदगी कैसी ही और कितनी ही हो और धोने और बदलने की कोई सूरत न हो तो यूंही नमाज़ पढ़ी जाएगी ।नापाकी बहुत ज़्यादा हो या कपड़े न हो तो नंगें बदन नमाज़ पढ़ी जाएगी । यह जो जाहिल लोग मामूली मामूली बातो पर कह देते हैं कि  ऐसी नमाज़ पढ़ने से तो न पढ़ना अच्छा। यह उनकी जहालत व गुमराही है। सही बात यह है कि मजबूरी के वक़्त नमाज़ छोड़ने से हर हाल में और हर तरह नमाज़ पढ़ना अच्छा है ।


दूध पीते बच्चे का पेशाब पाक है या नापाक?

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कुछ लोग समझते हैं कि दूध पीते बच्चे का पेशाब पाक है हालांकि ऐसा नहीं है। इन्सान का पेशाब मुतलक़न नापाक है। चाहे वह दूध पीते बच्चो का हो या बड़ो का। (फतावा रज़विया जिल्द 2,सफहा 146)

लोटे या गिलास को पाँच उंगलियों से पकड़ने का मसअला

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पानी से भरे लोटे या बरतन को पाँच उगलियो  से पकड़ने को बुरा जाना जाता है और मकरूह ख्याल किया जाता है। हालांकि यह एक जाहिलाना ख्याल है । पाँच उगलियो  से अगर लोटे को पकड़ लिया जाए तो उससे पानी में कोई खराबी नहीं आती है।



(बहारे शरीअत,हिस्सा 2 ,सफ़हा 28)


क्या सतर खुल जाने से वुज़ू टूट जाता है।

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अवाम में जो मशहूर है कि घुटना और सतर अपना या पराया देखने से वुज़ु जाता रहता है । यह एक वे अस्ल बात है । घुटना या रान वगैरा सतर खुलने से वुज़ु नही टूटता ।हाँ वगैर जरूरत सतर खुला रहना मना है। और दूसरों के सामने सतर खोलना हराम है

 (बहारे शरीअत , हिस्सा 2, सफहा 28)