अज़ान के वक़्त बातें करना
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अज़ान के वक़्त बातों में मशगूल रहना एक आम बात हो गई है अवाम तो अवाम बाज़ खवास अहले इल्म तक इसका ख्याल नहीं रखते जब कि हदीस शरीफ में है:
"जो अज़ान के वक़्त बातों में मशगुल रहे उस पर खात्मा बुरा होने का खौफ हैं।"
मसअला यह है कि जब अज़ान हो तो उतनी देर कें लिए न सलाम करे न सलाम का जवाब दे न कोई और बात करे यहाँ तक कि क़ुरान मजीद की तिलावत में क्या अज़ान की आवाज आए तो तिलावत रोक दे और अज़ान गौर से सुने और जवाब दे । रास्ता चलने में अज़ान की आवाज़ आ जाए तो उतनी देर खडा हो जाए, सुने और जवाब दे अगर चन्द अज़ाने सुने तो सिर्फ पहली का जवाब देना सुन्नत है ओर सबका देना भी बेहतर है।
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