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बोलचाल में कुफ्री बातें

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आम तौर बातचीत में कुफ्र के अल्फ़ाज़  बोल कर इस्लाम से ख़ारिज हो जाते है और ईमान से हाथ धो बैठते हैं इसका ख्याल रखना निहायत जरूरी है क्यूकि हर गुनाह की बख्शिश हैं लेकिन अगर कुफ्र बक कर ईमान खो दिया तो बख्शिश  और जन्नत में जाने  की कोई सूरत नहीं बल्कि सब  दिन जहन्नम' में जलना लाज़िमी है
हदीस शरीफ  में हैं कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया 'कि शाम को आदमी  मोमीन होगा तो सवेरे को काफिर और सुबह' को मोमिन होगा तो शाम को क़ाफ़िर।
  कालिमाते कुफ्र कितने हैं और किस किस' ,बात से कुफ्र  लाज़िम आता है  इसकी तफसील बयान ‘ करना दुशवार है लेकिन हम अवाम भाइयों के लिए चन्द हिदायतें लिखे देते हैं । इन्शा अल्लाह ईमान सलामत रहेगा ।
(1)आप बा-अदब हो जाइये । अल्लाह तआला उसके रसूल ,फरिश्तों, खानए काबा , मसाजिद,क़ुरान करीम दीनी किताबें  बुज़ुर्गाने दीन,उलमाए किराम,वालिदैन इन सब का अदब ताज़ीम और मुहब्बत दिल में बिठा लीजिए । बा अदब इन्सान का दिल खरे खोटे को परखने की तराजू हो जाता हैं कि न खुद उसके मुँह गलत बात   निकलती है और कोई और बके तो उसको नागवार गुज़रती है । इसीलिए। अनपढ बा-अदब अच्छा हैं पढ़े लिखे बे-अदब से।खुदाए  तआला फरमाता है :-
तर्जमा} जो अल्लाह की निशानियों की ताज़ीम करे तो यह दिलों की परहेज़गारी है।
(2) हंसी मजाक, तफ़रीह व दिललगी की आदत मत बनाइये और कभी हो तो उसमे ,दीनी मजहबी बातों को मत लाइये । खुदा तआला उसकी ज़ात व सिफ़ात अम्बियाए किराम फ़रिश्ते जन्नत दोजख अज़ाब सवाब नमाज़ रोजा वगैरा अहकामे शरअ का जिक्र हसी तफ़रीह में कभी न लाइये वरना ईमान के लिए खतरा पैदा हो सकता है । शआइरे इलाहिया (अल्लाह तआला की निशनियों) के साथ मज़ाक कुफ्र है ।
(3) बाज लोग इस किस्म की बातें सब को खुश करने कं लिए बोल देले हैं जिनका बोलना और ख़ुशी के साथ सुनना कुफ्र है । उन लोगों और ऐसी बातें करने वालों से दूर रहना ज़रूरी  है। मसलन सब धरम समान हें खिदमते खलक ही धर्म है देश पहले है धरम बाद में है, हम पहले फला मुल्क के वासी है और मुसलमान बाद में, राम रहीम दोनो' एक हैं, वेद व कुआन में कोई फर्क नहीं, मस्जिद' व मन्दिर दोनो' खुदा के घर हैं या दोनो जगह खुदा मिलता है, नमाज पढना बेकार आदमियों का काम है, रोजा वह रखे जिस को  खाना  न मिले, नमाज. पढना न पढ़ना सब बराबर है,हम ने बहुत पढ ली कुछ नहीं होता है, यह सब कलिमात खालिस कुफ्र ,गैंर इस्लामी काफिरों की बोलियां हैं जिन को बोलने से आदमी काफिर इस्लाम से खारिज हो जाता है । सियासी लोग इस किस्म की बातें गैर मुस्लिमों का खुश करने उनके बोट लेने के लिए बकते हें हालाकि देखा ये गया है कि वह उनसे खुश भी नहीं होते और 'गैर मुस्लिम अपने ही धर्म वालों को आमतौर से बोट देते हैं । इस तरह इन नेताओं को न दुनिया मिलती है न दीन । और जिन गैर मुस्लिमों के वोट आपको मिलना हैं वह अपना दीन ईमान बचा कर भी मिल सकते है । फिर चन्द रोज दुनिया के इक़्तिदार, नोटो और वोटों की खातिर क्या अपना ईमान बेचा जाएगा?
(4) मुसलमानो में जो नए नए फिरके राइज हुए है' उन से दूर रहना निहायत  ज़रूरी है। यह ईमान व अकीदे के लिए सब से बडा खतरा है मज़हबे अहलेसुन्नत बुजुर्गों की रविश पर काइम रहना ईमान व अक़ीदे की हिफाज़त के लिए निहायत लाज़िम है और मज़हबे  अहलेसुन्नत की सही तर्जमानी इस दौर में आला हज़रत  मौलाना अहमद रज़ा खाँ बरेलवी अलैंहिरहमतु वरिदवान ने फरमाई है । उनकी तालींमात ऐन इस्लाम है।
(गलत फहमियां और उनकी इस्लाह, पेज 13)

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