ईमान व अक़ीदे से ज़्यादा अमल को अहमियत देना
⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬हमारे काफी अवाम भाई किसी की ज़ाहिरदारी कोई अच्छा काम देखकर उसकी तारीफ करने लगते हैं और (प्रभावित) हो' जाते हैं जबकि इस्लामी नुक़्तए नज़र से कोई नेकी उस वक़्त तक कारआमद नही जब तक कि उसका ईमान व अक़ीदा दुरूस्त न हो।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने जब ऐलाने नवुब्बत फ़रमाया था तो पहले नमाज, जकात ,रोजा, हज और अहकाम व आमाल का हुक्म नहीं दिया था बल्कि यह फ़रमाया था कि अल्लाह तआला को एक मानो, बुतों की पूजा व परस्तिश से बाज आओ और मुझको अल्लाह का रसूल मानो I आज भी जब किसी गैर मुस्लिम को मुसलमान करते है तो सबसे पहले उसको नमाज रोजे अदा करने अच्छाईयाँ करने और बुराईयाँ छोडने का हुक्म नहीं दिया जाता बल्कि पहले कलिमा पढा कर मुसलमान किया जाता है फिर बाद में अच्छाईयाँ बुराईयॉऔर अहकाम ए इस्लाम से उसको आगाह किया जाता है I
हदीस शरीफ़ में है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि अगर कोई शख्स उहद पहाड़ के बराबर भी सोना राहे खुदा में खर्च करे,खुदाए तआला कबूल नही फरमायेगा,जब तक कि वह तकदीर पर ईमान न लाये। (मिश्कात शरीफ सफा २३)
इस हदीस से खूब वाजेह हो गया कि जो इस्लाम के लिए जरूरी अकाइद न रखता हो उसकी कोई नेकी, नेकी नहीं ।
क़ुरान करीम मे भी फरमाने खुदावन्दी है '"यह क़ुरान हिदायत है मुत्तकिन(तक़वे वालों) के लिए जो बगैर देखे ईमान लाये है, और नमाज़ अदा करते और हमारे दिये हुए माल मे से (हमारी राह में) खर्च करते हैं'"।
इस आयते करीमा में भी अल्लाह तआला ने नमाज़ राहे ख़ुदा में खर्च करने से पहले ईमान का ज़िक्र फ़रमाया है।
खुलासा यह है कि जिस शख्स का ईमान व अक़ीदा दुरूस्त न हो या वह गैर इस्लामी ख्यालात व अक़ाइद रखता हो उससे कभी मुतास्सिर (प्रभावित) नही होना चाहिये न उसकी तारीफ करना चाहिये चाहे वह कितने ही अच्छे काम करे ।
क़ुरान करीम में गैर इस्लामी अक़ाइद रखने वाले की नेकियां और उनके कारनामो को बेकार व फ़ुज़ूल फ़रमाया गया है और इस की मिसाल उस गुबार से दी गई है जो किसी चट्टान पर लग जाती है फिर उसे बारिश धोकर बहा देती है और उसका नाम व निशान तक बाकी नही रहता ।
No comments:
Post a Comment