Friday



लैटरीन में क़िब्ले की तरफ मुंह या पीठ करना

⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬
हदीस शरीफ में है अल्लाह  के रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया., जब तुम में से कोई रफए हाजत करे तो क़िब्ले  की तरफ न मुँह करे और न पीठ।(मिश्कात सफहा ४२)

इसके बरखिलाफ._ अवाम तो अवाम बाज़ खवास अहले इल्म तक में इस बात का ख्याल नहीं रखा जाता और पाखाना, पेशाब के वक़्त , आम तौर से लोग किब्ले, की जानिब मुह या पीठ कर लेते हैँ I घरों में लैटरीन बनाते  वक़्त , मुसलमानो को खास  तौर से इस बात का ,ख्याल रखना चाहिए कि बठने की सीट इस तरह लगाईं जाए कि इस्तिन्जा करने वाले का न मुँह काबे की तरफ़ हो और न पीठ I हिन्दुस्तग्न में लेटरीन की सीटें उत्तर दक्खिन रखी जायें, पूरब और पच्छिम न रखी जायें I अगर किसी के यहॉ गलती, से लैटरीन की सीट पूरब पच्छिम लगी हो तो पाँच सौ या  हजार रुपयों के  खर्च की फिक्र न करे । फ़ौरन  उसे उखडवा कर उत्तर दक्खिन कराए। हो सकता है कि अल्लाह तआला को उसकी यह नेकी पसन्द आ जाए और उसकी बख्शिश हो जाए I दरअस्ल अदब बेहद ज़रूरी  है।  बे अदबी से महरूमी आती है खैर व बरकत  उठ जाती है। नहूसत इन्सान को घेर लेती है । और अदब से ,खैर व बरकत आती है रहमत बरसती है I ज़िन्दगी पुर सुकून बारौनक  हो जाती है I

ईमान व अक़ीदे से ज़्यादा अमल को अहमियत देना

⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬
हमारे काफी अवाम भाई किसी की ज़ाहिरदारी कोई अच्छा काम देखकर उसकी तारीफ करने लगते हैं और  (प्रभावित) हो' जाते हैं  जबकि इस्लामी नुक़्तए  नज़र से कोई नेकी उस वक़्त तक कारआमद नही जब तक कि उसका ईमान व अक़ीदा दुरूस्त न हो।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने जब ऐलाने नवुब्बत फ़रमाया था तो पहले नमाज, जकात ,रोजा, हज और अहकाम व आमाल का हुक्म नहीं दिया था बल्कि यह फ़रमाया था कि अल्लाह तआला को एक मानो, बुतों की पूजा व परस्तिश से बाज आओ और मुझको अल्लाह का रसूल मानो I आज भी जब किसी गैर मुस्लिम को मुसलमान करते है तो सबसे पहले उसको नमाज रोजे अदा करने अच्छाईयाँ करने और बुराईयाँ छोडने का  हुक्म नहीं दिया जाता बल्कि पहले कलिमा पढा कर मुसलमान किया जाता है फिर बाद में अच्छाईयाँ बुराईयॉऔर अहकाम ए इस्लाम से उसको आगाह किया जाता है I
हदीस शरीफ़ में है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि अगर कोई शख्स उहद पहाड़ के बराबर भी सोना राहे खुदा में खर्च करे,खुदाए तआला कबूल नही फरमायेगा,जब तक कि वह तकदीर  पर ईमान न लाये। (मिश्कात शरीफ सफा २३)
इस हदीस से खूब वाजेह हो गया कि जो इस्लाम के लिए जरूरी अकाइद न रखता हो उसकी कोई नेकी, नेकी नहीं ।
क़ुरान करीम मे भी फरमाने खुदावन्दी है '"यह क़ुरान हिदायत है मुत्तकिन(तक़वे वालों) के लिए जो बगैर देखे ईमान लाये है, और नमाज़ अदा करते और हमारे दिये हुए माल मे से (हमारी राह में) खर्च करते हैं'"।
इस आयते करीमा में भी अल्लाह तआला ने नमाज़ राहे ख़ुदा में खर्च करने से पहले ईमान का ज़िक्र फ़रमाया है।
खुलासा यह है कि जिस शख्स का ईमान व अक़ीदा दुरूस्त न हो या वह गैर इस्लामी ख्यालात व अक़ाइद रखता हो उससे कभी मुतास्सिर (प्रभावित) नही होना चाहिये न उसकी तारीफ करना चाहिये चाहे वह कितने ही अच्छे काम करे ।
क़ुरान करीम में गैर इस्लामी अक़ाइद रखने वाले की नेकियां और उनके कारनामो को बेकार व फ़ुज़ूल फ़रमाया गया है और इस की मिसाल उस गुबार से दी गई है जो किसी चट्टान पर लग जाती है फिर उसे बारिश धोकर बहा देती है और उसका नाम  व निशान तक बाकी नही रहता ।

फ़िल्मी गानों में कुफ्रियात

⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬
आजकल हिन्दुस्तान में फिल्मी मनाज़िर और उनके गानो के ज़रिए भी मुसलमानों को काफिर बनाने और उनके ईमान व अकीदे को तबाह करने की मुनज़्ज़म साजिश चल रही हैं । फिल्म की मज़ेदारियो और उसकी लज़्ज़त और गानो की लुत्फ अन्दोजी के सहारे  ऐसे कड़वे घुट मुस्लिम नस्लो की घाटी से उतारे जा रहे  है जिन से कभी` वह बहुत भागते थे और मुसलमान उन्हें बडे आसानी से अब हजम करते चले जा रहे है, बल्कि सही बात यह है कि आजकल फिल्मों ,टेलीवीजनो कें जरिए काफिर अपने धर्म का प्रचार कर रहे है । आगे हम चन्द फिल्मी गानों के वह शेर लिख़ रहे है जिन का कुफ्र होना इतना जाहिर है कि उसके लिए किसी आलिम या मौलाना साहब से पूछने की क़तई जरूरत नही है बल्कि हर आदमी भी जान सकता है कि यह खालिस  काफिराना बकवासे है।

खुदा भी आसमां से जब ज़मी पर देखता होगा
मेरे महबूब को किसने बनाया सोचता होगा

 अब आगे जो भी हो अन्जाम देखा जाएगा
खुदा तराश लिया और बन्दगी कर ली।

रब ने मुझ पर सितम किया है
सारे जहाँ का ग़म मुझे दे दिया है

इन गानों का जाइज़ा लीजिये और देखिये अल्लाह तआला के बारे में यह अक़ीदा रखना कि वह आसमान से जब देखता होगा हालांकि मुसलमानो का अक़ीदा यह है कि अल्लाह रब्बुलइज़्ज़त हर चीज़ को हमेशा से देखता है और हमेशा देखेगा ।ख़ुदाए तआला के बारे में यह बकवास या मेरे महबूब को बनाने वाले के बारे में वह् सोचता होगा हालांकि उसका इल्म सोचने से पाक है,यह सब खुले कुफ्र हैं। इसी तरह दूसरे गाने मे, खुदा तराश लिया और बन्दगी कर ली,कितना बड़ा कुफ्र है इस्लाम से मज़ाक और क़ुरान करीम से ठट्ठा किया गया है जिस के खुले कुफ्र होने में जाहिल मुसलमान को भी शक नहीं है।
तीसरे गाने में परवर दिगार आलम को सितम गर बताना ,उससे शिकवा करना और उसकी नाशुक्री करना कि उसने सारे जहान का गम ,मुझे दे दिया है। यह सब वह कुफ्रियात है जो कितने मुसलमानो से कहला कर गानों के ज़रिये उनके ईमान खराब कर दिये हैं और इस्लामी हदों से बाहर लाकर खड़ा कर दिया गया है।

बोलचाल में कुफ्री बातें

⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬
आम तौर बातचीत में कुफ्र के अल्फ़ाज़  बोल कर इस्लाम से ख़ारिज हो जाते है और ईमान से हाथ धो बैठते हैं इसका ख्याल रखना निहायत जरूरी है क्यूकि हर गुनाह की बख्शिश हैं लेकिन अगर कुफ्र बक कर ईमान खो दिया तो बख्शिश  और जन्नत में जाने  की कोई सूरत नहीं बल्कि सब  दिन जहन्नम' में जलना लाज़िमी है
हदीस शरीफ  में हैं कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया 'कि शाम को आदमी  मोमीन होगा तो सवेरे को काफिर और सुबह' को मोमिन होगा तो शाम को क़ाफ़िर।
  कालिमाते कुफ्र कितने हैं और किस किस' ,बात से कुफ्र  लाज़िम आता है  इसकी तफसील बयान ‘ करना दुशवार है लेकिन हम अवाम भाइयों के लिए चन्द हिदायतें लिखे देते हैं । इन्शा अल्लाह ईमान सलामत रहेगा ।
(1)आप बा-अदब हो जाइये । अल्लाह तआला उसके रसूल ,फरिश्तों, खानए काबा , मसाजिद,क़ुरान करीम दीनी किताबें  बुज़ुर्गाने दीन,उलमाए किराम,वालिदैन इन सब का अदब ताज़ीम और मुहब्बत दिल में बिठा लीजिए । बा अदब इन्सान का दिल खरे खोटे को परखने की तराजू हो जाता हैं कि न खुद उसके मुँह गलत बात   निकलती है और कोई और बके तो उसको नागवार गुज़रती है । इसीलिए। अनपढ बा-अदब अच्छा हैं पढ़े लिखे बे-अदब से।खुदाए  तआला फरमाता है :-
तर्जमा} जो अल्लाह की निशानियों की ताज़ीम करे तो यह दिलों की परहेज़गारी है।
(2) हंसी मजाक, तफ़रीह व दिललगी की आदत मत बनाइये और कभी हो तो उसमे ,दीनी मजहबी बातों को मत लाइये । खुदा तआला उसकी ज़ात व सिफ़ात अम्बियाए किराम फ़रिश्ते जन्नत दोजख अज़ाब सवाब नमाज़ रोजा वगैरा अहकामे शरअ का जिक्र हसी तफ़रीह में कभी न लाइये वरना ईमान के लिए खतरा पैदा हो सकता है । शआइरे इलाहिया (अल्लाह तआला की निशनियों) के साथ मज़ाक कुफ्र है ।
(3) बाज लोग इस किस्म की बातें सब को खुश करने कं लिए बोल देले हैं जिनका बोलना और ख़ुशी के साथ सुनना कुफ्र है । उन लोगों और ऐसी बातें करने वालों से दूर रहना ज़रूरी  है। मसलन सब धरम समान हें खिदमते खलक ही धर्म है देश पहले है धरम बाद में है, हम पहले फला मुल्क के वासी है और मुसलमान बाद में, राम रहीम दोनो' एक हैं, वेद व कुआन में कोई फर्क नहीं, मस्जिद' व मन्दिर दोनो' खुदा के घर हैं या दोनो जगह खुदा मिलता है, नमाज पढना बेकार आदमियों का काम है, रोजा वह रखे जिस को  खाना  न मिले, नमाज. पढना न पढ़ना सब बराबर है,हम ने बहुत पढ ली कुछ नहीं होता है, यह सब कलिमात खालिस कुफ्र ,गैंर इस्लामी काफिरों की बोलियां हैं जिन को बोलने से आदमी काफिर इस्लाम से खारिज हो जाता है । सियासी लोग इस किस्म की बातें गैर मुस्लिमों का खुश करने उनके बोट लेने के लिए बकते हें हालाकि देखा ये गया है कि वह उनसे खुश भी नहीं होते और 'गैर मुस्लिम अपने ही धर्म वालों को आमतौर से बोट देते हैं । इस तरह इन नेताओं को न दुनिया मिलती है न दीन । और जिन गैर मुस्लिमों के वोट आपको मिलना हैं वह अपना दीन ईमान बचा कर भी मिल सकते है । फिर चन्द रोज दुनिया के इक़्तिदार, नोटो और वोटों की खातिर क्या अपना ईमान बेचा जाएगा?
(4) मुसलमानो में जो नए नए फिरके राइज हुए है' उन से दूर रहना निहायत  ज़रूरी है। यह ईमान व अकीदे के लिए सब से बडा खतरा है मज़हबे अहलेसुन्नत बुजुर्गों की रविश पर काइम रहना ईमान व अक़ीदे की हिफाज़त के लिए निहायत लाज़िम है और मज़हबे  अहलेसुन्नत की सही तर्जमानी इस दौर में आला हज़रत  मौलाना अहमद रज़ा खाँ बरेलवी अलैंहिरहमतु वरिदवान ने फरमाई है । उनकी तालींमात ऐन इस्लाम है।
(गलत फहमियां और उनकी इस्लाह, पेज 13)


⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬
कुछ लोग अल्लाह तआला को नाम लेने के बजाए ऊपर वाला बोलते हैं । यह निहायत गलत बात है बल्कि अगर यह अक़ीदा रख कर यह लफ्ज़ बोले कि अल्लाह तआला ऊपर है तो  यह कुफ्र है। क्यूंकि अल्लाह तआला की जात ऊपर नीचे आगे पीछे दाये बायें तमाम सम्तो हर मकान और हर  जमान से पाक है बरतर व बाला है । इन सब दिशाओं पूरब पच्छिम' उत्तर दक्खिन ऊपर नीचे दाहिने बाये आगे पीछे जमान व मकान को उसी ने पैदा किया है तो अल्लाह तआला के  लिए यह नहीं बोला जा सकता कि वह ऊपर है या नीचे है पूरब में है या पच्छिम में है क्यूंकि जब उसने इन चीजों को पैंदा नहीं किया था वह तब भी था कहॉ था और क्या था इसकी हकीकत को' उसके अलावा कोई नहीं जानता I ‘ अगर कोई कहे कि अल्लाह तआला अर्श पर है तो उससे पूछा जाए कि जब उसने अर्श को पैदा नहीं किया था तव वह कहॉ था? यूंही' अगर कोई कहे कि अल्लाह तआला ऊपर है तो उससे पूछा जाए कि ऊपर को पैदा करने से पहले वह कहॉ था?
हॉ अगर कोई शख्स अल्लाह तआला को ऊपर वाला इस ख्याल से कहे कि वह सब से बुलन्द व बाला है और उसका मर्तबा सब से ऊपर है तो यह कुफ्र नहीं है लेकिन फिर भी अल्लाह तआला को  ऐसे अल्फ़ाज़ से बोलना सही नही जिन से कुफ्र का शुबहा हो और अल्लाह तआला को ऊपर वाला कहना बहर हाल मना है जिससे बचना जरूरी है I
कुछ" लोग अल्लाह तआला को ' 'मालिक" कहते हैं, कि मालिक ने चाहा तो  ऐसा हो जाएगा या मालिक जो करेगा वह होगा वगैरा वगैरा I यह भी अच्छा तरीका नहीं है सब से ज्यादा सीधी सच्ची और अच्छी बात यह है कि अल्लाह को अल्लाह  ही कहा जाए क्यूकि  उसका नाम लेना सबसे अच्छी इबादत है । और उसका ज़िक्र करना ही इंसान का सबसे बड़ा मक़सद । और मुसलमान की पह्चान ही यह है कि उसको अल्लाह तआला का नाम लेने और सुनने में मज़ा आने लगे।
(गलत फहमियां और उनकी इस्लाह ,पेज 12)

Galat fehmiya aur unki islah Hindi

 Molana Tathir Ahmad Barelvi ki kitab hai Jo Ki Hindi Me Likhne Ki Koshish Ki Hai Koi Galti Mile To Mujhe Maaf kar Na.

Dua Ka Talib #Waseem Raza

गलत फहमियां और उनकी इस्लाह हिन्दी

मौलाना ततहीर अहमद बरेलवी की किताब है जो हिन्दी मे लिखने की कोशिश की है गलती हो तो माफ कर ना।

दुआ का तालिब #वसीम रज़ा