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तीजे के चनों का मसअला

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न्याज व फातिहा तीजे दसवीं,चालीसवीं,और तबारक वगैरा यह सब सिर्फ जाइज़ अच्छे और मुस्तहब काम हैं न शरअन फ़र्ज़ हैं न वाजिब न सुन्नत कोई न करे तब भी कोई हर्ज व गुनाह नहीं लेकिन आज कल उन कामों को इतना ज़रूरी समझ लिया गया है कि गरीब से गरीब आदमी के लिए भी उन का करना इतना ज़रूरी हो गया है कि ख्वाह कही से करे कैसे ही करे उधार कर्ज़ लेकर मगर करे ज़रूर यह सुन्नियत के नाम पर ज़्यादती हो रही है।

हक यह है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम और आप के सहाबा व ताबेईन के ज़माने में मय्यत को सवाब पहुँचाते और उसकी मगफिरत की दुआ के लिए सिर्फ जनाज़े की नमाज़ होती थी और किसी चीज़ का रिवाज़ न था यह सब काम बहुत बाद में राइज हुये कुछ मौलवियों ने उन्हें एक दम नाजाइज़ व हराम कह दिया सिर्फ इसलिए कि यह सब नये काम है। लेकिन उलमा-ए-अहले हक अहले सुन्नत वलजमाअत ने फरमाया कि यह सब काम अगचें नये हैं मगर अच्छे हैं बुरे नहीं लिहाज़ा जाइज़ हैं मुस्तहब हैं लेकिन उन्होने भी फर्ज़  या वाजिब या शरअन लाज़िम व ज़रूरी नहीं कहा मैंने इस बयान को तफ़सील व तहकीक के साथ अपनी किताब “बारहवीं शरीफ़ जलसे जुलूस"और दरमियान उम्मत में भी
लिख दिया है।
 आज कल बाज़ जगह तो गरीब से गरीब आदमी के लिए भी इस न्याज़ व फातिहा के रिवाज़ो को जो ज़रूरी खियाल किया जा रहा है यह बड़ी ज़्यादती है ।

तीजे के मौके पर जो चनों पर कलमा पढने का मुआमला है इसकी हकीकत सिर्फ इतनी है कि एक हदीस में यह आया है कि जो सत्तर हजार 70000/मर्तबा कलमा पढ़े या किसी दूसरे को पढ़ कर बख्शे तो इस की मगफिरत
हो जाती है।

आला हज़रत फरमाते हैं:
कलमा तय्यबा सत्तर हज़ार(70000) मर्तबा मअ दुरूद शरीफ पढ़ कर बख्श दिया जाये इन्शाअल्लाह पढ़ने वाले और जिस को बख्शा है दोनों के लिए ज़रीआ निजात
होगा। (अलमलफूज, जि.1 ,स.103/मतबूआ रज़वी किताब घर देहली)

 हजरत मौलाना अली कारी मक्की रहमतुल्लाहि तआला अलैहि ने भी मिरकात शरह मिश्कात किताबुस्सलात
बाब मा अललमामूमे मिनलमुताबअत फस्ले सानी, स.102 में इस हदीस को नकल किया है।
 अन्वारे सातिआ स.232/पर भी मिरकात शरह मिश्कात के हवाले से यह सत्तर हजार की हदीस मन्कूल है।
बुज़ुर्गों ने इस गिन्ती को पूरा करने के लिए साढ़े बारा सेर दरमियानी किस्म के चनों का अन्दाजा लगाया था।

आज कल की नई तोल के मुताबिक चुंकि “किलो इस सेर से कुछ छोटा होता है लिहाजा साढ़े चौदह किलो या फिर ज्यादा से ज्यादा पन्द्रह किलो चनों में पूरा सोयम् यानी सत्तर हजार बार कलमा मुकम्मल हो जायेगा।
 बरेली शरीफ से शाइअ फतावा मरकज़ी दारूलइफता में है।
चने की मिक़दार शरअन मुतअय्यन नहीं हाँ हदीस पाक में यह आया है कि "जिस ने या जिस के लिए सत्तर हज़ार कलमा शरीफ पढ़ा गया अल्लाह तआला अपने फज़ल व करम से उसे बख्श देता है। लोगों ने अपनी आसानी के लिए चने इख्तियार कर लिए कि उस में शुमारे कलमा  है और बाद में सदका भी और मशहूर है कि साढ़े बारह सेर चने में यह तादाद पूरी हो जाती है।
(फ़तावा मरकज़ी, दारूलइफता स.302)
कुछ मुल्लाजी लोग 32 बत्तीस किलो चने ख़रीदवाते है यह उन की ज़्यादती है खास कर गरीबों मजदूरों पर तो एक तरह का ज़ुल्म है और वह सोयम के चने पढ़ने की मज्लिस हो या कोई और आम लोगों को जमा कर के बहुत देर तक बैठाना भी इस्लामी मिजाज़ के खिलाफ है।
आला हज़रत फरमाते हैं:
शरीअत मुत्तहरा रिफक व तन्सीर (नर्मी और आसानी)को पसन्द फ़रमाती है न कि मआज़ल्लाह तदीक व तशदीद (तंगी और सख्ती) (फतावा रजविया जदीद11/151)
(गलत फहमियां और उनकी इस्लाह,पेज 188)

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