Monday

क्या हज़रत फातमा रदियल्लाहु तआला अन्हा की रूह मलकुलमौत ने नहीं क़ब्ज़ की ?

⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬
कुछ लोग कहते हैं कि ख़ातूने जन्नत हज़रत सय्यदा फ़ातमा ज़हरा रदियल्लाहु तआला अन्हुमा की रूहे मुबारक अल्लाह तआला ने बज़ाते खुद कब्ज़ फ़रमाई मलकुलमौत ने आप की रूह कब्ज़ नहीं की यह बात शायद इसलिए कही जाती है कि हज़रत सय्यदा फातमा रदियल्लाहु तआला अन्हा बहुत बा हया और पर्दे वाली थीं तो मालूम होना चाहिए कि फिरिशते बे नफ्स बे गुनाह और मासूम हैं उन से पर्दा नहीं फिरिश्ते तो उनके घर में उनकी खिदमत के लिए आते रहते थे हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के काशाना-ए-नबूवत में बे शुमार फिरिश्ते ख़ास कर हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम अकसर आते जाते रहते थे कभी हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने किसी अपनी ज़ोजए मोहतरमा से नहीं फरमाया कि यह फलाँ फिरिश्ता इस वक़्त मेरे पास है तुम उस से पर्दा करो एक मर्तबा हुज़ूर पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की पहली रफ़ीकाए मोहतरमा सय्यदा ख़दीजातुल कुबरा रदियल्लाहु तआला अन्हा सय्यदा फातमा की वालिदा मोहतरमा भी हैं वह हाज़िरे ख़िदमत थीं हजरत जिब्राईल अमीन हाज़िर हुये तो हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने सय्यदा ख़दीजातुल कुबरा से यह तो फ़रमाया यह जिब्राईल (अलैहिस्सलाम) मेरे पास हैं यह तुम्हें अल्लाह तआला का सलाम पहुँचाने आये हैं, लेकिन यह न फ़रमाया कि तुम उन से पर्दा करो। यह सब बातें अहादीस की किताबों में आसानी से देखी जा सकती हैं और इल्म वालों से छुपी हुई नहीं हैं।
खुलासा यह है कि यह बात बे सनद और रिवयतन सही नहीं कि हज़रत फातमा रदियल्लाहु तआला अन्हा की रूह अल्लाह तबारक व तआला ने बगैर मलकुल मौत खुद कब्ज़ फ़रमाई । मलकुलमौत फिरिश्ते के ज़रीये नहीं
हज़रत बहरुल उलूम से एक मर्तबा यह सवाल किया गया तो उन्होंने जवाब में फ़रमाया तमाम इंसानों की रुह कब्ज़ करने वाले मलकुलमौत हैं कुरआन शरीफ में है।

قل يتوفاكم مالك الموت الذى و كل بكم ثم إلى ربكم ترجعون (السجده-١١)

तर्जमा- तुम सब लोगों की रूह कब्ज करने के लिए मलकुलमौत मुकर्रर हैं। (फतावा बहरुल उलूम 2/76)

(गलत फहमियां और उनकी इस्लाह ,पेज 193)

Friday

खाने के शुरू में नमक या नमकीन 

⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬
बाज़ रिवायात में है कि जब खाना खाओ तो नमक से शुरू करो और नमक पर ख़त्म करो यह सत्तर बीमारियों का एलाज है।
 कुछ हज़रात इस सुन्न्त की अदायेगी के लिए खाने से पहले और बाद में नमक चाटना ज़रूरी ख्याल करते हैं। हांलाकि इस सुन्नत की अदायेगी के लिए नमक चाटना जरूरी नहीं बल्कि नमकीन खाना पहले और बाद में खाया


जाये तब भी यह सुन्नत अदा हो जायेगी क्योंकि खाने में भी नमक ज़रूर होता है और नमक जिसे अरबी में (मिल्ह) ملح कहते हैं इसके मअना नमकीन और खारी चीज़ के भी आते हैं कुरआन करीम में समन्दर के पानी के लिए फ़रमाया गया।
{هذا ملح اجاج} [ الفرقان 53]

यह खारी है निहायत तल्ख
 (कन्ज़ूल ईमान,सूरह फुरकान,आयत 53)

मौलवी मुहम्मद हुसैन साहब मेरेठी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि फ़रमाते हैं कि आला हज़रत के लिए सेहरी में फिरीनी और चटनी लाई गई, मैंने पूछा हुज़ूर चटनी फिरीनी का किया जोड़ | फरमाया नमक से खाना शुरू करना और नमक पर ही ख़त्म करना सुन्नत है इसलिए यह चटनी आई है। (हयाते आला हज़रत, जि.1, स.151 ,मतबूआ बरकात रज़ा पूरबन्दर)

तो आला हज़रत के नज़दीक भी इस सुन्नत की अदायेगी के लिए नमकीन खाना पहले और बाद में खाना काफी है नमक चाटना ज़रूरी नहीं वरना वह चटनी के बजाये नमक मंगवाते।
 अल्लामा आलम फकरी लिखते हैं,हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से मरवी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि तीन लुकमे नमकीन खाने से पहले और तीन लुक्मे खाने के बाद बनी आदम को बहत्तर बलाओ से महफूज रखते हैं।
(आदाब सुन्नत 94)
 खुलासा यह कि जब दसतर ख्वान पर नमकीन मीठा सब तरह का खाना मौजूद हो तो सुन्नत है नम्कीन खाये फिर मीठा और बाद में फिर नम्कीन और इस सुन्नत की अदायेगी के लिए यही काफी है दसतर ख्वान पर नमक रखने या उसको मंगा कर चाटने की ज़रूरत नही।
 (गलत फहमियां और उनकी इस्लाह ,पेज 193)

होली,दीवाली की फातिहा

⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬
होली,दीवाली यह खालिस गैर मुस्लिमों के त्यौहार है ।इस्लाम और मुसलमानों का उन से कोई तअल्लुक नहीं। मुसलमानों को उन दिनों में ऐसे रहना चाहिए जैसे आज कुछ है ही नहीं और इन दिनों को किसी किस्म की कोई खुसूसियत नहीं देना चाहिए।
कही कही कुछ लोग होली के मौका पर होलिका नाम की औरत की फातिहा दिलाते हैं कुछ लोगों ने होलीका का नाम मुराद बीवी रख लिया है और उस नाम से फ़ातिहा दिलाते हैं और कहते हैं कि होलीका हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर आशिक हो गई थी और उन पर ईमान लाई थी तो यह सब गढ़ी हुई हिकायते और झूटी कहानियाँ हैं जिनका हकीकत से किसी किस्म को कोई तअल्लुक नहीं और हरगिज़ होली को कोई हैसियत देते हुये इससे मुतअल्लिक किसी किस्म की कोई फातिहा नहीं करना चाहिए (फतावा बहरुलउलूम जि•1,स•162)
दीवाली के मौके पर कुछ लोग मछली पका कर फातिहा पढ़वाते हैं यह भी गलत हैं कहते हैं कि दीवाली के मौके पर करने धरने और टूटके बहुत होते हैं और मछली पर फातिहा पढ़ने से वह बे असर हो जाते हैं तो यह सब जाहिलाना ख्यालात और वहम परस्ती की बातें और एक मुसलमान को उन सब से बचना ज़रूरी है अगर दीवाली के मौका पर मछली पर फातिहा का रिवाज़ पड़ गया तो कभी यह भी हो सकता है कि घरों को सजाना और रोशनिया करना हिन्दूओं की दीवाली होगी और मछली पर फातिहा मुसलमानों की दीवाली लिहाज़ा इन दिनों में किसी किस्म का कोई नया काम नहीं करना चाहिए और आम हालात में जैसे रहते हैं वैसे ही रहना चाहिए।
(गलत फहमियां और उनकी इस्लाह ,पेज 192)

Tuesday

नमाज़ में अत्तहियात वगैरा से पहले बिस्मिल्लाह पढ़ना

⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬⏬
नमाज में अलहम्दु शरीफ से पहले बिस्मिल्लाह पढना सुन्नत है और उस के बाद जब कोई सूरत शुरू करे तब भी बिस्मिल्लाह पढ़ना मुस्तहब है। उस के अलावा रुक सजदे,कादा वगैरा में बिस्मिल्लाह पढ़ने की इजाजत नहीं। अत्तहियात से पहले या दुआये कुनूत या दुरूद शरीफ और
उस के बाद की दुआ से पहले बिस्मिल्लाह पढ़ना मना है। क्योंकि बिस्मिल्लाह कुरआन की आयत है और नमाज में कियाम की हालत में अलहम्दु शरीफ और उसके बाद किरअत कुरआन मशरुअ है उसके अलावा किरअत मम्नूअ
है। (फतावा रजविया जदीद जि.6,स.350)
(गलत फहमियां और उनकी इस्लाह,पेज 191)