Monday

दो बे सनद हदीसे

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वतन की मोहब्बत ईमान से है।
जाबेह बकर और कातेअ शजर वाली हदीस यानी जिस हदीस में गाये ज़िबह करने वाले या पेड़ काटने वाले की बख्शिश नहीं बयान किया जाता है।
आला हजरत फरमाते है:
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वतन की मोहब्बत ईमान का हिस्सा है न हदीस से साबित है न हर गिज़ उस के यह मअना
(फतावा रज़विया जदीद जि.15 स292)
और फरमाते हैं:
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जिबह का पेशा शरअन मम्नूअ नहीं न उस पर कुछ मुवाखिज़ा है वह जो हदीस लोगों ने दरबार-ए-जाबेह बकर व कातिअए  शजर बना रखी है महज़ बातिल व मोज़ूअ है।
(फतावा रज़विया जदीद जि.20स.250)
(गलत फहमियां और उनकी इस्लाह ,पेज 199)

Tuesday

रिशवत लेने और देने का मसअला

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हदीस पाक में है:-}रसलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने रिशवत देने और लेने वाले पर लअनत फ़रमाई। (मिश्कात,बाब रिज़्क़ुलवला,सफहा 326)

लेकिन यह रिशवत लेने देने की चार सूरतें हैं।
(1) कोई मनसब या ओहदा कबूल करने के लिए रिशवत
देना और लेना दोनों हराम हैं।
(2) अपने हक में फैसला कराने के लिए हाकिम को रिशवत दे यह भी दोनों के लिए हराम है ख्याह वह फैसला हक़ पर हो या न हो क्योंकि फैसला करना हाकिम की ज़िम्मेदारी है इसके लिए इसको कुछ लेना या किसी का उस को कुछ देना हराम है। अफसरों को कोई काम करने के लिए कुछ माल देना और उनका लेना दोनों हराम हैं।
(3) अपने जान व माल इज़्ज़त व आबरू की हिफाज़त के लिए किसी ज़ालिम को कुछ देना पड़ जाये तो यह देना जाइज़ है लेकिन लेने वाले के लिए यह भी हराम है। मैं समझता हूँ कि इस का मतलब यह है कि अगर कोई शख्स आप को गाली गलोज करता हो,लूटने मारने की धम्की देता हो,उस वक़्त उसको कुछ देकर आप अपने जान व माल की हिफाज़त कर लें तो यह जाइज़ है हाकिमों अफसरों को जो कुछ दिया जाता है यह तो बहरहाल सब रिशवत है और हराम है ख्वाह अपना हक़ हासिल करने या अपने हक़ में सही फैसला कराने के लिए दे क्योकि हक़ फैसला करना इस की डियूटी है।
(4) किसी शख्स को इसलिए रिशयत दी कि वह उसको बादशाह या हाकिम तक पहुँचा दे तो यह देना जाइज़ है
लेकिन लेने वाले के लिए हराम है।(फतावा रज़विया जदीद
जि.18 स.496,शरह सही मुस्लिम मौलाना गुलाम रसूल
सईदी. जि5. स.70)
(गलत फहमियां और उनकी इस्लाह ,पेज 197)