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दो बे सनद हदीसे

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वतन की मोहब्बत ईमान से है।
जाबेह बकर और कातेअ शजर वाली हदीस यानी जिस हदीस में गाये ज़िबह करने वाले या पेड़ काटने वाले की बख्शिश नहीं बयान किया जाता है।
आला हजरत फरमाते है:
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वतन की मोहब्बत ईमान का हिस्सा है न हदीस से साबित है न हर गिज़ उस के यह मअना
(फतावा रज़विया जदीद जि.15 स292)
और फरमाते हैं:
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जिबह का पेशा शरअन मम्नूअ नहीं न उस पर कुछ मुवाखिज़ा है वह जो हदीस लोगों ने दरबार-ए-जाबेह बकर व कातिअए  शजर बना रखी है महज़ बातिल व मोज़ूअ है।
(फतावा रज़विया जदीद जि.20स.250)
(गलत फहमियां और उनकी इस्लाह ,पेज 199)

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