Friday


पैन्ट और पाजामा की मोरी चढ़ाकर नमाज़ पढ़ना

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कुछ लोग टखनों से नीचा लटका हुआ पाजामा और पैन्ट पहनते हैं अगर उन्होने इसकी आदत डाल रखी है और तकब्बुर व घमन्ड कें तौर पर वह ऐसा करते है तो यह नाजाइज गुनाह है और इस तरह नमाज़ मकरूह लेकिन अगर इत्तिफाक से हो या बेख्यालीऔर बेतवज्जोही से हो तो हर्ज नहीं, और जो लोग  इससे बचने के लिए और टखने खोलने के लिए मोरी पायेंचे को चढाते हैं वह गुनाह को घटाते नहीं बल्कि बढाते हैं और नमाज़ में खराबी को कम नहीं करते बल्कि ज़्यादा करते हैं , यह पैन्ट और पाजामे की मोरी पायेंचे को लपेट कर चढाना नमाज़ में मकरुह तहरीमी है ।
हदीस में है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि मुझे हुक्म दिया गया कि मैं सात हड्डियों पर सज्दा करूं ,पेशानी,दोनो हाथ ,दोनो  घुटने और दोनों पंजे और यह हुक्म दिया क्या कि मैं नमाज़ में कपडे और बाल न समेटूँ |
(बुखारी शरीफ,मुस्लिम शरीफ,मिश्कात शरीफ सफहा 83)

इस हदीस की रोशनी में कपड़ा समेटना और चढाना नमाज में मना है लिहाजा पैन्ट और पाजामे की मोरी लपेटने और चढाने वालों को इस हदीस से इबरत हासिल करना चाहिए ।
लेकिन इस्लाह करने वालो से भी गुजारिश हैं कि नमाज़ में इस किस्म की कोताहियॉ बरतने वालों को नरमी और प्यार महब्बत से समझायें , मान जायें तो ठीक वरना उन्हें उनके हाल पर रहने दें और मुनासिब तरीके से इस्लाह करें । उनको डाँटना, झिड़कना और उनसे लडाई झगड़ा करना बहुत बुरा है । जिसका नतीजा यह भी हो सकता है कि वह मस्जिद में आना और नमाज़ पढना छोड दें जिसका बबाल उन झिड़कने वालों पर है, क्यूँकि इसमे भी कोई शक नहीं कि बाज़ इस किस्म की खामियों के साथ नमाज़  पढने वाले बेनमाज़ियों से हज़ारो दर्जा बेहतर है ----और नमाज़ में कोताहियॉ करने वालों को चाहिए अगर कोई उनकी इस्लाह  करे तो बुरा मानने के बजाय उसकी बात पर अमल करें उस पर गुस्सा न करें क्यूँकि वह जो कुछ कह रहा है आपकी भलाई के लिए कह रहा है अगर वह तुर्शी और सख्ती से भी कह रहा है तो वह उसका फ़ेल है, आपका काम तो हक़ को सुन कर अमल करना है, झगड़ा करना नही ।

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